Monday, 3 February 2020

ग़ज़ल

काफ़िया - अना
रदीफ़ - सीखा है
मात्राभार - 16

फूलों से हँसना सीखा है ,
काँटों से लड़ना सीखा है ।

बाधाएँ डिगा न पायेंगी ,
पहाड़ों से अड़ना सीखा है ।

अंधेरों की मुझे फिक्र नहीं ,
दीपक से जलना सीखा है ।

मंजिल से पहले रुकना नहीं ,
सूरज से चलना सीखा है ।

आँधियाँ उखाड़ न पायेंगी ,
तृणों से झुकना सीखा है ।

पथरीली राहों पर चलकर ,
लक्ष्य तक पहुँचना सीखा है ।

हौसला बना रखना " दीक्षा",
पंछियों से उड़ना सीखा है ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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