Wednesday, 19 February 2020

यादों के सफ़र में

यादों के सफ़र में
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पत्ते तो झड़ गये पर ,
गुल खिल गये शज़र में ।
कुछ इस तरह  यूँ ही ,
आ गई वो मेरी नज़र में ।
अनजाने  ही  चल पड़ा मन ,
 फिर यादों के सफ़र में ।

शरारतों से भरी गलियाँ ,
गुजरा जहाँ बचपन  ।
साथ पाकर तुम्हारा ,
सुरभित  हुआ यौवन ।
लौट कर जब भी आया ,
चर्चा हुआ शहर में ।
अनजाने  ही चल पड़ा मन ,
फिर यादों के सफ़र में ।

वो नदी का किनारा ,
वक्त साथ जो गुजारा ।
गुलमोहर के लाल दरीचे ,
अपनी ओर मुझको खींचे ।
बहक  जाते थे दिल ,
महके हुए मंजर में ।
अनजाने ही चल पड़ा मन ,
फिर यादों के सफ़र में ।

एक - दूजे से किया वादा ,
हम दोनों न निभा पाये ।
मंजिल तो  एक थी पर ,
साथ- साथ चल न पाये ।
कहीं न कहीं तो मिलेंगे ,
हम जीवन की डगर में ।
अनजाने ही चल पड़ा मन ,
फिर यादों के सफ़र में ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़








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