न्याय मिलने में लगती इतनी देरी क्यों है ।
उम्र बीत जाती है न्याय की आस में ,
अदालतों के दर पर लगती फेरी क्यों है ।
दाँव - पेंच लगा कर दोषी छूट जाते ,
मासूम लगाता इंसाफ की टेरी क्यों है ।
सम हो न्याय के हथौड़े की टंकार ,
इंसाफ में भेदभाव ,तेरी - मेरी क्यों है ।
हताश हो जाता है फरियादी यहाँ " दीक्षा ",
न्यायालय की गली सँकरी , अंधेरी क्यों है ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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