Monday, 24 February 2020

ग़ज़ल

मुकदमों की लगती इतनी ढेरी क्यों है ,
न्याय मिलने में लगती इतनी देरी क्यों है ।

उम्र बीत जाती है न्याय की आस में ,
अदालतों के दर पर लगती फेरी क्यों है ।

दाँव - पेंच लगा कर  दोषी छूट जाते ,
मासूम लगाता इंसाफ की टेरी क्यों है ।

सम हो  न्याय के हथौड़े की  टंकार  ,
इंसाफ में भेदभाव ,तेरी - मेरी क्यों है ।

हताश हो जाता है फरियादी यहाँ " दीक्षा ",
न्यायालय की गली सँकरी , अंधेरी क्यों है ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

No comments:

Post a Comment