एक सच्चा दोस्त मिलना जिंदगी का सबसे खूबसूरत उपहार होता है । उस दिन मैं डेंटिस्ट के पास गई थी । काफी भीड़ थी , अपनी बारी का इंतजार करते हुए मैं वहाँ बैठे लोगों के चेहरे पढ़ रही थी । हमारे आस - पास न जाने कितनी कहानियाँ साँस लेती रहती हैं बस उन्हें ध्यान से सुनने की आवश्यकता होती है । ऐसे ही एक मजेदार व्यक्ति मिले , मैं उनसे बातें करती रही । वे भी मेरे बारे में उत्सुकता से पूछ रहे थे कि मेरी शिक्षा और व्यवसाय क्या है , निवास , परिवार इत्यादि । मुझे लगा वे अपने इलाज के लिए ही आये होंगे । एक बुजुर्ग जिनकी उम्र अस्सी वर्ष की थी उन्हें डॉक्टर ने बुलाया । उनका दाँत तोड़ना था तो डॉक्टर ने उनके अटेंडेंट को बुलाया क्योंकि दाँत तोड़ने के बाद कई बार चक्कर आता है या थोड़ी कमजोरी महसूस होती है तो साथ में परिवार के एक सदस्य को रहना जरूरी होता है । डॉक्टर के बुलाने पर वे अंकल जिनसे मैं बात कर रही थी - " मैं उनके साथ आया हूँ बोलकर अंदर गये "। फिर हँसते हुए बाहर आये , आते ही मुझसे बोले - "डॉक्टर साहब पूछ रहे थे आप इनके साथ आये हैं इनकी उम्र कितनी है । मैं बोला - "अस्सी साल "। फिर डॉक्टर मुझसे पूछे - " आपकी उम्र क्या है ? " मैं बोला बयासी साल । ये मेरा दोस्त है । डॉक्टर हँसने लगे - " आप इनको अच्छे से ले जायेंगे । मैं बोला - " हाँ इसीलिए तो आया हूँ । " डॉक्टर बोले - ठीक है फिर आप बाहर बैठिये ।
यह बात कहते हुए उस बयासी वर्ष के बुजुर्ग के चेहरे पर जवानों- सा आत्म विश्वास था और उनकी यही खूबी उनकी ताकत थी । मुझे उनके अस्सी वर्ष के दोस्त के विश्वास पर भी गर्व हुआ जो उनके भरोसे अस्पताल आये थे । कहाँ हम साठ वर्ष होते ही अपने बड़ों को आराम करने की सलाह देने लगते हैं लेकिन उनकी जिंदादिली , आत्मविश्वास बनाये रखना चाहिए ताकि उनमें जीने का जज़्बा बना रहे । वे सक्रियता व चुस्ती - फुर्ती के साथ जिंदगी का जश्न मनाते रहें । वो बयासी वर्ष के बुजुर्ग ..नहीं नहीं जवान दोस्त मेरे यादों के पिटारे में अपनी विशेष जगह बना गये हैं ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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