आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Wednesday, 29 April 2020
सीख (संस्मरण )
Monday, 27 April 2020
नमन माँ शारदे
Thursday, 23 April 2020
सजल
Wednesday, 22 April 2020
सजल
Sunday, 19 April 2020
शिक्षक के लिए
Thursday, 16 April 2020
सीख प्रकृति की
Wednesday, 15 April 2020
बेटा बड़ा हो गया (संस्मरण )
सजल
Tuesday, 14 April 2020
सजल
सजल
Monday, 13 April 2020
मुक्तक
Sunday, 12 April 2020
ग़ज़ल
Thursday, 9 April 2020
खिला रहे फूल ( कहानी )
ससुराल से आए दो दिन हो गए थे आज रीमा को ...पता नहीं क्यों वह पहले वाली चंचल चुलबुली रीमा नहीं लग रही थी । उसकी मम्मी देख रही थी वह कुछ उदास अनमनी- सी है । जब से आई थी उसने एक बार भी अपने पति रोहन या अपने ससुराल वालों का जिक्र नहीं किया था । तीसरे दिन खाना खाने के बाद जब सभी सोने चले गये तो उन्होंने अपनी बेटी का मन टटोला - " क्या बात है बेटा , तुम कुछ उदास लग रही हो कहीं रोहन से झगड़ कर तो नहीं आई तुम ?" पहले तो रीमा थोड़ी सकपकाई , फिर उसने यह स्वीकार कर लिया । मम्मी , रोहन तो बिल्कुल अपनी मम्मी की हर बात मानते हैं । कभी मेरा पक्ष लेते ही नहीं । इसी बात के कारण कई बार हमारा झगड़ा हुआ वरना हम लोगों के बीच कोई विवाद होता ही नहीं । उनकी मम्मी को भी हमें कुछ स्पेस देना चाहिए न ,पर वो तो हमेशा बेटे के पीछे लगी रहती हैं । खाना ठीक से खाया कि नहीं । यहाँ जाओ ,वहाँ मत जाओ । रात को जल्दी घर आया करो , बाहर का खाना मत खाया करो । हर चीज में रोक-टोक , मैं तो परेशान हो जाती हूँ । रोहन को तो कुछ फर्क ही नहीं पड़ता , उनको यह सब सामान्य लगता है ।
बेटे , शुरुआत में थोड़ी एडजस्टमेंट प्रॉब्लम तो होती ही है । तुम कुछ समय धैर्य रखो , धीरे - धीरे सब कुछ सामान्य हो जाएगा । शादी को दो साल होने को आये मम्मी और कितना समय दूँ । बेटे होने के अलावा रोहन अब पति भी हैं , क्या मेरी तरफ उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती । अब मेरा उनके साथ रहना मुश्किल है , मुझे रोहन से दिक्कत नहीं है लेकिन उनकी फैमिली के साथ मैं नहीं रहूँगी , बस यही बोलकर मैं घर आ गई हूँ । उन्हें स्वीकार होगा तो मुझे लेने आयेंगे वरना मैं आत्मनिर्भर हूँ ,उनके बिना भी रह लूँगी " - रीमा ने अपना फैसला सुना दिया था । उसकी मम्मी सोच में पड़ गई , आजकल के बच्चे छोटी-सी समस्या को बड़ी बना लेते हैं । हम लोगों के जमाने में तो ये निभा ही नहीं पाते । सुबह उठकर जो रसोई में घुसते तो पतिदेव से मिलना रात को ही होता था । बड़ों के सामने दोनों की घिघ्घी बंधी रहती । सीधे खाना माँगने में भी संकोच करते । आजकल अब वह बंधन नहीं रहा , न वह रूढ़िवादिता । आजकल के सास-ससुर भी आजाद ख्याल के हो गए हैं । फिर भी बच्चों को कोई न कोई शिकायत रहती है , अपनी बेटी की जिद को वह भली - भाँति पहचानती थीं किस प्रकार उसे परिवार की महत्ता वह समझाए कुछ समझ नहीं आ रहा था । बस वह वक्त का इंतजार करने लगीं और वह अवसर उन्हें शीघ्र मिल भी गया ।
एक दिन घर के बगीचे में माँ-बेटी साथ घूम रहे थे । बारिश का खुशगवार मौसम था , चारों ओर हरियाली छाई हुई थी । हल्की बूंदाबांदी के बीच घूमते हुए रीमा को पीले गुलाब से खिला गमला दिख गया और वह प्रसन्नचित्त होकर अपने मनपसंद फूलों को प्यार से सहलाने लगी । उसकी मम्मी ने तुरंत एक फूल तोड़कर झट से रीमा के हाथ में पकड़ा दिया । अरे मम्मी ! आपने यह क्या कर दिया । इसे तोड़ क्यों दिया , यह पौधे से अलग होकर कितने देर तक खिला रहेगा । कुछ समय बाद मुरझा जायेगा । यदि तोड़ती नहीं तो अभी कई दिनों तक खिला रहता ।
हाँ बेटा , मैंने सिर्फ फूल ही तोड़ा है तुम तो किसी पौधे को उसकी जड़ से अलग करना चाहती हो । " किसकी बात कर रही हो मम्मी " , रोहन की बात कर रही हूँ बेटा , क्या तुम उसे उसकी जड़ों से दूर करने की शर्त नहीं रख रही । जरा सोचो , उसके मम्मी - पापा चाहे जैसे भी हों पर उसके लिए तो वे सदैव सम्मानित ही रहेंगे न । उनसे अलग रहकर क्या उसे सच्ची खुशी मिल पायेगी । अपनी शादी को बचाने के लिए वह अलग हो भी जायेगा तो इस गुलाब की तरह मुरझा नहीं जाएगा । फिर उसे दुःखी कर क्या तुम उसके साथ खुश रह पाओगी । रीमा कुछ पल अपने हाथों में थामे गुलाब को देखती रही और कुछ पल सोचकर बोली - "आप सच कह रही हैं मम्मी । मैं आपकी बात समझ गई । अपने परिवार से अलग रहना किसी समस्या का समाधान नहीं है । अब मुझे जो भी समस्या होगी मैं वहीं उनके साथ रहकर ही सुलझा लूँगी । आपकी तरह सकारात्मक नजरिया रखने से शायद मुझे अधिक समस्या होगी भी नहीं । थैंक्यू मम्मा । आप चिंता मत कीजिए । मेरी गृहस्थी का गुलाब पौधे में ही खिला रहेगा ,मैं उसे उसकी जड़ों से अलग नहीं करूँगी । दोनों माँ - बेटी खिलखिलाकर हँस पड़े थे ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़