शिक्षा के इस महायज्ञ में , करना है हमको अंशदान ।।
विचलित न हों कर्तव्य - पथ से ,अपने - आप को लघु मान ।
सागर की विशालता में ,हर बून्द का होता योगदान ।।
लीक पुरानी छोड़ चलें अब , नवाचार की बाहें थाम ।
छँट गई बदली भ्रांतियों की , विज्ञान को मिला खुला आसमान।
छिड़ जाने दो जमकर , अंधेरे - उजाले का महा संग्राम ।
तैयार खड़े हैं अक्षर बाँकुरे , करके सारे इन्तजाम ।।
सद्भाव की श्यामल धरा पर , बीज उगायें कर्मवान ।
स्नेह , प्रेरणा के सिंचन से , फसल बनायें निष्ठावान ।।
गर्व करें हम शिक्षक हैं , है यह कार्य बड़ा महान ।
निभाकर अपना दायित्व , कर्म को अपना दें सम्मान ।।
स्वरचित -डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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