वैदेही तुम त्याग और धैर्य की मूरत थी ,
सेवाभावी , दया और ममता की सूरत थी ।
रामप्रिया , पति की अनुगामिनी, धर्म परायणा _
लक्ष्मण - रेखा को लाँघने की क्या जरूरत थी ।।
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चली वैदेही राम के संग पर वक्त न उसके साथ चला ,
उस ने निभाया सदा धर्म अपना पर रावण ने उसे छला ।
अग्नि परीक्षा देकर उसने निष्कलंक साबित किया खुद को _
हुई निर्वासित फिर भी , शक की आग ने उसे दिया जला।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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