समांत - ईल
पदांत - है
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भाग्य की शिकायत में देता कई दलील है ,
कर्मशीलता का पक्षधर वक्त बना वकील है ।
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लक्ष्य निर्धारित करने से ही मिलेगी मंजिल ,
साहस से ऊँची उड़ान भरता हुआ चील है ।
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घाव कड़वी बोली का भरता नहीं जीवन भर ,
छोड़ जाती निशान जब चुभती कोई कील है ।
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सत्संग का असर देखो क्या रंग दिखाता है ,
अंबर के अनुराग में समंदर हुआ नील है ।
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न्याय की देवी ने आँखों पर बाँधी पट्टी है ,
चीख - चीख कर सच कर रहा न्याय की अपील है ।
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स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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