Saturday, 4 April 2020

फिर लौट आया बचपन

थिरकने लगा है मेरा अंग - अंग ,
बारिश ने जब - जब भिगोया तन - मन ।
डोरी बनी  उड़ते पतंग के संग ,
मृग से कुलांचे भरते चंचल नयन ।
मस्ती लिये फिर लौट आया बचपन ।।

बुलाया बगिया के पुष्पों ने हरदम ,
झूले ने उमंगित किया है यह तन ।
मर्यादा की बेड़ी में जकड़े कदम ,
पर तितलियों के पीछे दौड़ा यह मन ।
मस्ती लिये फिर लौट आया बचपन ।।
 
तस्वीर पुरानी जो हाथ में आई ,
स्मृतियों में थिर हुआ चंचल चितवन ।
पुरानी सखियों की यादें  आईं ,
मायके की याद में छाया सावन ।
मस्ती लिये फिर लौट आया बचपन ।।

झाँके आँखों में जब कोई सुंदर गाँव ,
 तालाबों के शीतल जल की छुअन ।
अमराई की ठंडक , पीपल की छाँव ,
 कानों में सरगम सुनाती ज्यों पवन ।
मस्ती लिये फिर लौट आया बचपन ।।

पहने माँ की साड़ी , दादी की नकल ,
मन को भाती माँ की चूड़ी खनखन ।
बच्चों की शरारत में दिखती शक्ल ,
बज उठती  जब मेरी पायल छनछन ।
मस्ती लिये फिर लौट आया बचपन।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़







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