बारिश ने जब - जब भिगोया तन - मन ।
डोरी बनी उड़ते पतंग के संग ,
मृग से कुलांचे भरते चंचल नयन ।
मस्ती लिये फिर लौट आया बचपन ।।
बुलाया बगिया के पुष्पों ने हरदम ,
झूले ने उमंगित किया है यह तन ।
मर्यादा की बेड़ी में जकड़े कदम ,
पर तितलियों के पीछे दौड़ा यह मन ।
मस्ती लिये फिर लौट आया बचपन ।।
तस्वीर पुरानी जो हाथ में आई ,
स्मृतियों में थिर हुआ चंचल चितवन ।
पुरानी सखियों की यादें आईं ,
मायके की याद में छाया सावन ।
मस्ती लिये फिर लौट आया बचपन ।।
झाँके आँखों में जब कोई सुंदर गाँव ,
तालाबों के शीतल जल की छुअन ।
अमराई की ठंडक , पीपल की छाँव ,
कानों में सरगम सुनाती ज्यों पवन ।
मस्ती लिये फिर लौट आया बचपन ।।
पहने माँ की साड़ी , दादी की नकल ,
मन को भाती माँ की चूड़ी खनखन ।
बच्चों की शरारत में दिखती शक्ल ,
बज उठती जब मेरी पायल छनछन ।
मस्ती लिये फिर लौट आया बचपन।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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