Wednesday, 15 April 2020

सजल

मुझ पर हक अपना  जताने लगे हैं ,
अपना  सब कुछ वो लुटाने लगे हैं ।

मिट्टी लगी है त्याग और विश्वास की , 
घर को बनाने में जमाने लगे हैं ।

हो गया भरोसा पंछियों को मुझपे ,
घोंसला मेरे घर बनाने लगे हैं ।

पाला है जिनको खून - पसीने से ,
दवा न लाने के बहाने लगे हैं ।

दिल में जगह थोड़ी दे दी उन्होंने ,
रूठने पर मुझे अब मनाने लगे हैं ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़



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