अपना सब कुछ वो लुटाने लगे हैं ।
मिट्टी लगी है त्याग और विश्वास की ,
घर को बनाने में जमाने लगे हैं ।
हो गया भरोसा पंछियों को मुझपे ,
घोंसला मेरे घर बनाने लगे हैं ।
पाला है जिनको खून - पसीने से ,
दवा न लाने के बहाने लगे हैं ।
दिल में जगह थोड़ी दे दी उन्होंने ,
रूठने पर मुझे अब मनाने लगे हैं ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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