Thursday, 2 April 2020

मुक्तक

खून से लथपथ पड़ी है अपनों की लाश ,
नशे के मूल में ही छुपा है सर्वनाश ।
सोचने - समझने की खत्म हो गई शक्ति_
खत्म कर दी है स्वयं की जीने की आस ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

No comments:

Post a Comment