Wednesday, 14 February 2018

मिल गई मंजिल ( कहानी )

अजय की नौकरी छूटे आज तीन महीने हो रहे थे ,कोई दूसरी नौकरी नहीं मिली थी...यहाँ - वहाँ भटकते परेशान  अजय  समाचार - पत्र में वेकेंसी देखते बैठा था ...तभी  उसकी पत्नी अलका ढेर सारे सामान लेकर अंदर आई।
    अरे ! तुम कब बाजार चली गई , मुझे पता ही नहीं चला. मुझे बोल देती , सामान मैं ला देता...वैसे भी खाली ही बैठा हूँ -अंतिम वाक्य कहते - कहते उसकी आवाज थोड़ी भर्रा गई थी । पर...सारी जमापूंजी तो खत्म हो गई है , सामान कहाँ से आया  ,सवालिया नजरों से उसने अलका की ओर देखा था । पत्नियों के पास छुपे हुए खजाने होते हैं.. इतना भी नहीं जानते पतिदेव । पर चिंता मत कीजिए , ये पैसे आपके ही हैं... आपके ही वेतन के पैसे जो घर - खर्च के लिए लेती थी ..उनमें से कुछ बचाकर प्रति माह मैं जमा करती आ रही थी..कि कभी जरूरत में काम आयेंगे.. और जरूरत न पड़ी तो एकाध आभूषण खरीद लूँगी । आप बिलकुल परेशान मत होइए..निश्चिन्ततापूर्वक दूसरी नौकरी ढूँढिये.. तब तक गृहस्थी चलाना मेरी जिम्मेदारी है। दोपहर में खाली रहकर बोर हो जाती थी तो थोड़ी सिलाई भी कर लिया करती हूँ , आजकल बहुत कपड़े आने लगे हैं मेरे पास । मुसीबत की घड़ी किसी भी तरह
बीत ही जायेगी ,बस आप अपने आप पर विश्वास रखें और धैर्य न खोएं  और हाँ.. परिवार के लिए आपको
समझौता करने की कोई आवश्यकता नहीं... अपनी योग्यता के अनुसार ही नौकरी कीजिए आप , जल्दबाजी में कोई भी नौकरी जॉइन करने की आवश्यकता नहीं है ।
      किसी बुजुर्ग की तरह समझाती अलका  को देखकर उसे हँसी आ गई थी.. जो आज्ञा मैडम जी , आपके कथनानुसार ही सब काम होगा । अजय के ऐसा कहते ही वे दोनों जोर से हँस पड़े थे..उनकी इस खिलखिलाहट ने घर के बोझिल माहौल को हल्का कर दिया था । तन्मयता से काम करती अलका  को देखकर अजय अतीत में चला गया था ..कितना बड़ा बेवकूफ था वह...जो इसी अलका से शादी करने से मना कर दिया था । वो भी सिर्फ इसलिए कि उसका रंग कुछ दबा हुआ था , बाकी सब कुछ अच्छा था । अच्छे परिवार , संस्कार , शिक्षा  सब कुछ सही था ...दिखने में आकर्षक भी थी...तीखे नैन - नख़्स , लम्बे बाल ,छोटा सा प्यारा चेहरा ,कमसिन काया की स्वामिनी थी वह..
अजय के माता - पिता दोनों को बहुत पसंद थी वह , सच पूछो तो उनकी जिद ही वजह बनी इस विवाह की । उन्होंने शायद भविष्य देख लिया था अपने बेटे का..कितना सही कहते थे वे..  गोरे रंग को इंसान की पहचान मत मानो बेटा , रूप - रंग तो शुरुआती आकर्षण भर हैं ..जीवन में यही सब कुछ नहीं है अच्छे गुण और अच्छे संस्कार इंसान की प्रथम प्रायिकता होनी चाहिए ,शारीरिक  सुंदरता से बढ़कर है मन की सुंदरता जो मनुष्य में होना अत्यंत आवश्यक है ।
सुख में हमें किसी के साथ की आवश्यकता नहीं पड़ती , जो दुख में साथ दे , सहयोग दे , अपने आप को संयमित रखे वही सच्चा साथी है । विपरीत परिस्थितियां शायद हमारे जीवन में  अपनों की परख के लिए ही आती हैं , यह हमारे धैर्य की परीक्षा लेती हैं । बड़ों का निर्णय बिल्कुल सही था..वैवाहिक जीवन के शुरुआत में उसे कुछ नाराजगी अवश्य थी , पर जैसे - जैसे वह अपनी पत्नी को समझता गया वह उसे अच्छी लगने लगी..अब उसकी नजरों में अलका से खूबसूरत कोई नहीं । उसने कितनी आसानी से कठिनाइयों को स्वीकार कर लिया था । नदी के प्रवाह में बहते कागज की नाव की तरह उसने अपना जीवन अजय को समर्पित कर दिया था ..चाहे जिस दिशा में ले चलो..किसी भी परिस्थिति का सामना करने को तैयार । एक बार भी उसने शिकायत नहीं की कि उसने नौकरी क्यों छोड़ दी..
अब क्या होगा.. कम्पनी से मिली सब सुविधाएँ छोड़नी पड़ी , घर छोड़ना पड़ा ...परेशान होना पड़ा पर उसने कभी अपना धैर्य नहीं खोया बल्कि अजय को दिलासा देती रही कि सब अच्छा ही होगा । हम फिर से अच्छी स्थिति में पहुंचेंगे.. उसके विश्वास ने अजय का आत्मविश्वास बढ़ाया और वह  अच्छी कम्पनी देखता रहा , साक्षात्कार दिलाता रहा और एक दिन अपनी योग्यता के अनुरूप एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में उसका चयन सहायक प्रबंधक के पद पर हो ही गया ।
     वक्त ने उन्हें जीवन के कई पहलू दिखाए थे और रिश्तों के भी ...जीवन रूपी समुद्र के मंथन से मीठे और कटु दोनों अनुभव मिलते हैं.. पथरीले रास्तों पर जब तक न चलें तब तक उस दर्द का एहसास नहीं होता जो कंकड़ों के चुभने से होता है । अजय ने अपने अनुभवों से बहुत कुछ सीखा था..जीवन से सामंजस्य बनाना ,
साहस व धैर्य बनाये रखना ..। उसकी सबसे बड़ी पूंजी थी उसकी सहचरी अलका , जिसने उसकी उम्मीद न टूटने दी , उसका हौसला बढ़ाया ,उसका हर कदम पर साथ दिया । नौकरी के साथ अजय को सच्चे प्यार की पहचान भी हो गई थी। उसे प्यार की मंजिल मिल गई थी ..एक और बात सीखी थी उसने  ...साहिल तब तक न छोड़ो जब तक कश्ती  न मिल जाये , कश्ती तब  तक न छोड़ो जब तक मंजिल  न मिल जाये ।।

स्वरचित ----डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

1 comment: