मायने खोते रिश्ते ,
अजनबी सा लगे # शहर ।
लाभ - हानि का हिसाब औ,
स्वार्थ ढा रहा # कहर ।
भिगोती नहीं मन को अब,
नेह की मृदुल # लहर ।
सामंजस्य प्रेम की सरिता,
सूखकर गई # ठहर ।
घुल गया रगों में ,
धोखेबाजी का # जहर ।
टूटते विश्वास के ताने - बाने,
परिवार रहे # बिखर ।
आधुनिकता की चोट का,
रिश्तों पर हुआ # असर ।
वक्त की घड़ी चल रही पर,
थम गया है # पहर ।
बचा लें अपना घर - आँगन ,
रह न जाये कोई # कसर ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़