रुचि ....बताओ तो किसका पत्र आया है - आफिस से आते ही अक्षय ने आवाज लगाई । अक्षय के हाथ मे एक खूबसूरत लिफाफा था , उसे देखकर रुचि समझ
गई कि निशा दीदी का पत्र आया है ।
यह लो तुम्हारा पत्र - अक्षय ने हाथ आगे बढ़ाया
पर जैसे ही रुचि ने उसे पकड़ना चाहा , अक्षय ने अपना
हाथ खींच लिया । दीजिये न ! रुचि पत्र को लेने के लिए
मचल पड़ी । वैसे अक्षय की मजाक करने की आदत उसे अच्छी लगती है ,पर दीदी के पत्र के लिए वह इंतजार भी तो नहीं कर सकती ।
निशा , रुचि की प्यारी बहन , किस्मत की धनी
थी । एक ही घर में जन्म लेकर भी दोनों के रूप - रंग
और स्वभाव में जमीन - आसमान का अंतर था । निशा
दीदी बहुत ही खूबसूरत और शोख स्वभाव की थी ,
उनके इस असाधारण रूप - सौन्दर्य को देखकर शहर
के जाने - माने रईस रमाकांत जी के सुपुत्र ऐसे मुग्ध
हुए कि उन्होंने विवाह करने की जिद ही ठान ली ।
इतना अच्छा रिश्ता पाकर पिताजी भी तुरन्त
राजी हो गए । उनकी शादी के बाद एक बार रुचि
दीदी के घर गई थी । उनका शानदार बंगला देख कर
ही उसकी आँखें खुली रह गई थी , नौकरों - चाकरों
से घर भरा था ....किसी रानी से कम नहीं था उनका
वैभव ....।
इसके विपरीत रुचि के नैन - नक्श साधारण थे।
उसकी शादी एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुई थी ।अक्षय
एक कम्पनी में इंजीनियर थे , वैसे उसे भी किसी बात की कमी नहीं थी , पर दीदी के सामने वह अपने आपको हमेशा बौना महसूस करती । उसे ईश्वर से बहुत
शिकायत थी , जिसने दो बहनों की किस्मत में इतना
भेदभाव किया था । अक्षय इस बात को समझता था ,
इसलिये हमेशा उसे खुश रखने की कोशिश करता ।
निशा दीदी का पत्र पढ़कर रुचि खुशी से चहक उठी
-अक्षय , अगले हफ़्ते दीदी यहाँ आ रही हैं हमारे घर ।
अरे वाह! यह तो खुशी की बात है - अक्षय ने कहा । पर, अचानक ही रुचि उदास हो गई । उसका बुझा हुआ
चेहरा देखकर उसने पूछा - तुम्हें क्या हुआ ?
- अक्षय क्या दीदी को हमारा यह छोटा सा घर
पसन्द आएगा ? कहाँ वे और कहाँ हम ।
- ओह रुचि , तुम चिन्ता क्यों करती हो ? उन्हें हम
कोई तकलीफ नहीं होने देंगे । दिन भर घुमाएंगे , बाहर
खाना खिलाने ले जाएंगे , मै ऑफिस से दो - तीन दिन
की छुट्टी ले लूंगा , अब तो हँस दो । पति की बातें सुनकर रुचि बहुत खुश हुई । वाकई , अक्षय उसका
बहुत खयाल रखते हैं ।
पूरा सप्ताह निशा दीदी के इंतजार में बीता , आखिर दीदी आ गई , जीजाजी साथ नहीं आये थे ,
वह अपने व्यवसाय के काम से बाहर गए थे । अक्षय
और रुचि का स्वागत देखकर दीदी बहुत खुश हुई ।सड़क किनारे पानीपूरी , चाट खाना ,बगीचे की
हरियाली को निहारना , पौधों को पानी देना जैसी
छोटी - छोटी बातें दीदी को इतनी खुशी प्रदान करेगी
रुचि ने सोचा न था । लगता था जैसे वो इन सब के
लिए तरस रही हों । जिसके पास जिस चीज की कमी
हो , वही उसके लिए अनमोल होती है । सड़क किनारे
झुग्गी - झोपड़ी में रहने वाले के लिए खाना और
अच्छा घर एक सपना होता है , उसे पेड़ ,पौधों ,प्रकृति
की सुंदरता निहारने में क्या मजा आएगा ? दीदी के
साथ पूरा सप्ताह कैसे बीता , पता ही नहीं चला ।
जाते वक्त दीदी ने खूब जिद की अपने साथ चलने
की । उनके असमर्थता जाहिर करने पर , जल्द ही
छुट्टी में आने का वादा लेकर ही वे गई ।
रुचि, दीदी के ठाठ - बाट से प्रभावित थी । वह
भौतिक सुख - सुविधाओं को सुखी जीवन का पर्याय
मानती थी । पर , अक्षय के विचार भिन्न थे । वह सादे
जीवन को ही अपना आदर्श मानता था और हमेशा
रुचि को समझाता कि महलों में लोग खो जाते हैं ,
इसलिये अधिक ऊँचा बनने का ख्वाब देखना ठीक
नहीं । पर , दीदी के वैभव से प्रभावित रुचि को कुछ
समझ में नहीं आता था और वह छोटी - छोटी बातों
को लेकर अक्षय से लड़ बैठती थी । यही बातें अक्सर
दोनों के बीच तनाव का कारण बन जाती थी ।
सच का एहसास रुचि को तब हुआ , जब वह कुछ
दिनों के लिये दीदी के पास गई । दरअसल , अक्षय को
प्रशिक्षण के लिए ऊटी जाना पड़ा इसलिए रुचि निशा
दीदी के पास चली आई थी ।
वाकई , उस महल में दीदी गुम सी गई थी । उनकी
शोखियों को भारी आभूषणों ने दबा दिया था । नौकरों
की फौज और समस्त सुख - सुविधाओं वाले उस बंगले
में एक सन्नाटा था । घर की जिम्मेदारियों , सास - ससुर
की सेवा में दीदी लगी रहती ।ये पहले की रुचि दीदी तो बिल्कुल नही थी ।
जीजाजी घर पर कभी - कभी ही रहते थे । रुचि
वहाँ दस दिन रही , पर उनसे एक - दो बार ही मुलाकात
हो पाई वो भी कुछ समय के लिए । हालांकि दीदी ने
उसे शहर घुमाया , अपनी सहेलियों से मिलाने ले गई,
पर रुचि का मन वहाँ नहीं लगा । उस दिखावे भरे
माहौल से वह जल्दी ही ऊब गई । दीदी अपनी उदासी
को मुस्कुराहट की ओट में छुपाने का असफल प्रयास
करती थी , यह देखकर रुचि को बहुत दुःख हुआ ।
कितना सही कहा था अक्षय ने - दूर के ढोल सुहाने
होते हैं रुचि , दूर से हमें ढोलक की आवाज मधुर लगती
है , लेकिन जैसे - जैसे उसके पास आते जाते हैं , वही
आवाज कर्कश लगने लगती है और बिल्कुल करीब से तो उसे सुनना भी असहनीय हो जाता है । आज रुचि को महसूस हुआ कि उसके पास तो अमूल्य सम्पत्ति है, हर परिस्थिति में जीने की प्रेरणा देने वाला अक्षय और
खुशियों से भरा उनका प्यार सा घर । छोटी - छोटी
बातों के लिये उसने अक्षय को कितना तंग किया था,
जाते ही माफी मांग लेगी उनसे । उसे अपने पति की
बहुत याद आ रही थी , उसने दीदी से अपने जाने का
निर्णय कह सुनाया और गुनगुनाते हुए तैयारी करने
लगी अपने प्रिय के पास जाने की ।
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स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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