Thursday, 4 May 2017

मुक्तक

           1
वासंती रंग में मन भीगा - भीगा लगता है ।
इसके आगे हर रंग फीका लगता है ।
भर देती है उमंग मदमाती हवाएँ ।
फूलों सा दिल खिला - खिला लगता है ।।

            2
फूलों से प्यारी उसकी मुस्कान है ।
दिल की वो धड़कन,घर की जान है ।।
            3
तुम हरदम मेरे साथ हो ऐसे ,
खुशबू घुली हो फ़िज़ाओं में जैसे ।।
            4
अपनों ने भरोसा तोड़ दिया, इल्जाम दूँ मैं किसको ।
बड़ा मुश्किल काम दे दिया अब, किस्मत ने मुझको ।।
            5
ज़िन्दगी में सब कुछ मिलता नहीं है ।
अपनी गलतियों से कुछ सीखता क्यों नहीं है ।
कर्म कर ए दोस्त , सफलता मिले न मिले  ।
तू आदम है आदम , कोई खुदा नहीं है ।।
           6
पतझड़ के बाद आती है बहार ,
सिक्के के दो पहलू हैं जीत या हार ।
बेचैनियों में भी आ  गया करार ,
दिल में जब से पलने लगा प्यार ।।
           7
ए हवा चल तू जरा साथ मेरे ,
उनकी यादों से महके दिन - रात मेरे ।
फ़िज़ाओं में घुली हैं चाहतें उनकी ,
शोख रंगों में भीगे जज़्बात मेरे ।।
           8
फूल कितने भी खूबसूरत हों ,
टूट जाया करते हैं ।
साथ कितना भी प्यारा हो ,
छूट जाया करते हैं ।।
         9
खुशबू  रह जाती हैं फूल में ,
टूटने के बाद भी ।
यादें  रह जाती हैं रिश्तों में ,
साथ छूटने के बाद  भी ।।
        10
दरख़्त सूख कर फिर से हरे नहीं होते ।
वक्त पर जो काम  न आये,वो दोस्त खरे नहीं होते ।।
          11
महफ़िल में कुछ कमी सी क्यूँ है ?
आँखों में तेरी कुछ नमी सी क्यूँ है ?
मिलते ही जो बोल उठती थीं ,
निगाहों में बर्फ जमी सी क्यूँ है ?
           12
ये दुनिया है आना - जाना ,
यहाँ किसी का नहीं ठिकाना ।
सीख लो तुम अपना बनाना ,
जाते हुए यादें छोड़ जाना ।।
          13
चुनौतियाँ देती हैं , अपनी ही शख्सियत मुझे ।
किसी और से नहीं , खुद से होड़ है मेरी ।।
            14
कूक उठी कोयल , बागों में छाई तरुणाई ।
फूलों की मुस्कान देख , भौरों में मदहोशी छाई।
झंकृत हो उठे हृदवीना के तार , शोख नजरों ने बात  चलाई ।
चंचल मन आखिर बोल उठा , आप आये तो बहार आई।।
            15
घर आखिर घर होता है ,
यहाँ सुख-चैन का बसर होता है ।
सुकून का पहरा होता है ,
दुआओं का असर होता है ।।

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