दर्द का दर्द भरे दिल से ,
कैसा है गहरा नाता ।।
भाव भरे इस बंधन की ,
थाह न कोई पाता ।।
इसे कहने और समझने को ,
ना चाहिए कोई भाषा ।।
भाव - प्रवण , सजल नयन ,
बन जाते परिभाषा ।।
अवरुद्ध कण्ठ , चिंतातुर मन में,
जागी सुधार की आशा ।।
छूटती जा रही साँसों को ,
थामने की अभिलाषा ।।
स्नेह , सेवा , सत्कार ,
सहानुभूति की प्रत्याशा ।।
प्यार के दो मीठे बोल ,
व्यथित मन को दे जाते दिलासा ।।
सुख - दुख का साझापन ,
अपनों को करीब लाता ।।
भुलाकर सारी कडवाहटें ,
दिलों की दूरियाँ मिटाता ।।
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स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Thursday, 4 May 2017
दिल से....
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