हम सब को एक ही चीज की तलाश है । हम उसे पाने के लिये जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं , दिन - रात एक कर रहे हैं।
जितना अपने पास है , उससे अधिक चाहिये । एक घर हो गया
दूसरा चाहिये । कार नहीं है तो कार चाहिये ,कार है तो उससे अच्छा वाला ( आरामदायक ) चाहिये । हर कोई अपने जीवन स्तर को ऊँचा उठाना चाहता है , वो सारी सुविधाएं अपने परिवार को उपलब्ध कराना चाहते हैं । शायद जीवन की सफलता के यही पैमाने हैं । अमीरी , रहन - सहन , यश ,मान - सम्मान जिसके पास है , दुनिया की नजरों में वही व्यक्ति पूजा जाता है । पर क्या खुशियाँ इनके होने से ही मिलती है । जिसके
पास यह सब नहीं क्या वह खुश नहीं हो सकता ।सच तो यह
है कि ऐसे भी हैं जिनके पास सब कुछ है परंतु स्वास्थ्य ठीक
नहीं है , उनके सुख - दुख में साथ देने वाले अपने नहीं हैं , किसी के पास सच्चे दोस्त नहीं हैं तो किसी का परिवार नही है। कुछ न कुछ कमी हर इंसान में होती है फिर भी हम उन्हें
नजरअंदाज कर उनके साथ जीते हैं वैसे भी सबको सब कुछ
नहीं मिलता ,जितना अपने पास है , जो मिल गया उसी के लिये हम ईश्वर का धन्यवाद करें । कल जब मेरे पास ये होगा
तो मैं ये करूँगा वाली प्रवृत्ति छोड़ें क्योंकि जिंदगी का क्या
भरोसा , कब मुट्ठी में से रेत की भांति फिसल जाए। अपने आज
को जियें और जी भर जियें । जिस हाल में हैं सन्तुष्ट रहें ,खुश
रहें क्योंकि खुशियों को ढूंढने जाएंगे तो वो नहीं मिलेगी ,वो
तो हमारे आस - पास ही बिखरी पड़ी है , बस हमारे महसूस
करने की देर है ,इन्हें समेट लीजिये अपने दामन में ।
मत पूछो खुशियों की हद, मिलेगी ये कहाँ ।
बिखरी है कण - कण में ,धरती से लेकर आसमाँ।
घृणा नहीं , हिंसा नहीं ,प्रकृति का खूबसूरत समां।
जी लो जी भर के, पाओ खुशियाँ ही खुशियाँ ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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