Friday, 19 May 2017

खोटा सिक्का ( कहानी )

     आज निमिष ने बैंक में अपनी नौकरी लगने की खबर सुनाई तो हर्षातिरेक से मेरी आँखें भर आईं ।
ईश्वर ने आज मेरी फरियाद सुन ली थी। निमिष ने अपनी योग्यता साबित  कर दी थी । समाज इन्हीं
सब से तो मूल्यांकन करता है व्यक्ति का । परीक्षा
में जो अच्छे अंक लाये वही अच्छा विद्यार्थी ; पढ़ -
लिख कर उच्च पद प्राप्त करे , खूब पैसा कमाए
वही सफल  इंसान , चाहे इसके लिए  उसने कितनों के साथ अन्याय किया हो , चाहे उसमें लाख बुराइयाँ हों , सब दब जाती हैं । उसमें अच्छे इंसान होने के अन्य गुण हो या न हो , दुनिया को उससे फर्क नहीं पड़ता परन्तु उनसे जुड़े लोगों को तो पड़ता है । क्यों हमारा समाज ऐसे थोथे मानदण्ड अपनाता है व्यक्ति को परखने का ? आज्ञाकारी , सेवाभावी , ईमानदार व्यक्ति इन मापदण्डों पर खरा न उतरे तो क्या घर , परिवार , समाज के लिये
उसका कोई महत्व नहीं रह जाता । किसी के पास बहुत
पैसे आ जाये और वह जरूरतमंद की मदद करने की
भावना नहीं रखता तो क्या वह समाजोपयोगी कहलाएगा ?
         निमिष और  शिरीष  मेरी दीदी के दो बेटे ,रूप -
रंग , देहयष्टि में दोनों ही श्रेष्ठ हैं । शिरीष  बचपन से ही
कुशाग्र बुद्धि निकला , हमेशा कक्षा में प्रथम स्थान
प्राप्त करता परन्तु उससे तीन वर्ष छोटा निमिष दिन
भर क्रिकेट में रमा रहता । चलते- फिरते , उठते - बैठते
उसके हाथ बॉलिंग की मुद्रा बनाते ही दिखते । वह नींद
में भी आउट - आउट बड़बड़ा उठता । पढ़ाई में विशेष
रुचि नहीं थी उसकी ।
       निमिष की नौकरी लगने की खुशी में मैंने सारे मोहल्ले में मिठाई बाँट डाली थी परंतु मेरे पति यश
की टिप्पणी ने मुझे आहत कर दिया था - इतनी खुश
तो तुम शिरीष के  एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में असिस्टेन्ट
मैनेजर बनने पर नही हुई थी , जितनी निमिष के बैंक
में क्लर्क की नौकरी लगने पर हो रही हो ।...शायद वह
अपनी जगह सही थे ।
        मुझे वह दिन याद आ रहा था जब मेरे बेटे आर्यन
के पैर में चोट लग गई थी और मैंने दीदी को फोन किया
था । शिरीष  घर पर था पर उसकी  पढ़ाई का समय होने के  कारण वह नही आया  । निमिष को बाहर ही
किसी से यह जानकारी हुई और वह दौड़ा - भागा चला आया था । उसने आर्यन को अस्पताल ले जाने में न सिर्फ मेरी मदद की बल्कि उसकी मरहम - पट्टी होते तक वहीं मेरे साथ बैठा रहा । मेरे पति यश की पोस्टिंग
बाहर थी इसलिये मैं दोनों बच्चों को लेकर अकेले ही
रह रही थी । नौकरी करते  हुए  बच्चों को लेकर अकेले
रहना; सचमुच कई बार बहुत परेशान हो जाती थी मैं ।
जब - जब मुझे सहयोग की आवश्यकता होती , निमिष
को भनक भर लगने की देर थी और वह हाजिर हो जाता था ।
      गैस सिलेंडर लाना है , सब्जी लाना है , ऑटो न
आने पर बच्चों को स्कूल छोड़ना है इत्यादि कई छोटे
मोटे काम वह खुशी से कर देता । मेरे लिये ही नहीं ,
उसके विशाल हृदय का द्वार हर किसी के लिये खुला
था । उसके दोस्तों की फेहरिस्त भी काफी लंबी थी ,
ऐसे इंसान को दोस्त बनाना कौन नहीं चाहेगा जो
निःस्वार्थ सबकी मदद करने को तैयार रहता हो। अपने पापा - मम्मी की भी वह हर बात मानता। उसके लिए
अपनी पढ़ाई या अपना खेल कुछ भी इतना महत्वपूर्ण
नहीं था ।नदी के कलकल बहते स्वच्छ जल की तरह
था उसका जीवन , जिधर राह मिली , उधर चल दी ।
       उसके उलट शिरीष अलग स्वभाव का था । दोस्त
हों या रिश्तेदार , हर सम्बन्ध में वह अपना फायदा देखता था ।दीदी - जीजाजी भी हर बात में उसका पक्ष
लेते । शिरीष की पढ़ाई , उसकी सुविधाओं का विशेष
ध्यान रखा जाता । कोई भी काम हो -निमिष तू जा , निमिष कर देगा न ! कई बार उसकी परीक्षा के समय
भी दीदी निमिष को उठा  देती। मैंने दीदी को कई बार
टोका भी ,परन्तु वह ध्यान नहीं देती....कौन सा अच्छे
नम्बर लाता है ।
        निमिष का मन शायद वह पढ़ नहीं पाती थी । बड़ा भाई इतना प्रतिभाशाली और छोटा भाई बड़ी
मुश्किल से पास हो रहा है । दोनों की तुलना हर बात
में होती थी । पड़ोसी , रिश्तेदार सभी के व्यवहार में
भेदभाव स्पष्ट दिखाई देता था । आखिर बच्चा  था
वह भी , दुखी तो होगा ही । कभी - कभी बहुत उदास
होकर वह मेरे पास आकर रोता था । मै उसे समझाती-
" तू किसी की बात को दिल से मत लगाना निमिष ।
तू तो दिल का हीरा है बेटा हीरा...जिसकी परख हर
कोई नहीं कर सकता । जीवन में सिर्फ पढ़ाई , नम्बर
ही सब कुछ नहीं है बेटा । तेरी सबसे बड़ी खूबी यही है
कि तू सच्चा इंसान  है । अपने सद्व्यवहार से तुम बहुत
आगे जाओगे ...तुम अपने - आपको कभी मत बदलना
निमिष , तुम ऐसे ही रहना । मैंने उसे अपने गले से लगा
लिया था । समय - समय पर मै उसे कई प्रेरक - प्रसंग
सुनाया करती थी । ऐसे लोग जो बहुत ही संघर्ष करके
जीवन में आगे बढ़े हैं । उद्यमी , संगीतकार , गीतकार , नृत्यांगना जो पढ़ाई के अलावा विविध क्षेत्रों में आगे बढ़े
उनके बारे में उसे बताया ताकि वह निराशा  व कुण्ठा
से ग्रसित न हो ।
       शिरीष का एन. आई. टी. त्रिची में दाखिला हो गया
था अतः वह पढ़ाई करने बाहर चला गया । निमिष कॉमर्स लेकर पढ़ाई करने लगा । कम अंकों से ही सही ,पर प्रत्येक कक्षा में वह पास होता रहा । बी. कॉम
की परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिये जीजाजी उसे
खूब डाँटते । कम अंक आने पर दीदी ने भी उसे ताने
दिए यहाँ तक कि उसे खोटा सिक्का भी कह डाला ।
निमिष के साथ उस दिन मेरी भी खूब खिंचाई हुई कि
मैं उसका साथ देती हूँ । दीदी ने मुझसे कहा - " सीमा
तेरा तो वह बहुत लाडला है ना ! अब तू ही उसे समझा
पढ़ - लिख लेगा तो उसके अपने जीवन के लिये सही
रहेगा । वरना कोई दुकान खोल के बैठना पड़ेगा ।"
     " दीदी , मै उसे समझाऊंगी और यदि आप लोग
थोड़ा धैर्य रखें तो वह जरूर सम्भल जाएगा । "धरती
की गहराइयों में दबे रहने पर भी सोना , सोना ही रहता
है , पीतल नहीं बन जाता ; हाँ उसका तपना जरूरी है
अपनी चमक पाने के लिये ।" लेकिन प्लीज, अभी उसे
ताने देना आप लोग बन्द कीजिये । उसे वक्त दीजिये ,
उस पर अपनी इच्छाओं को मत थोपिए ...कहीं भावावेश में उसने कोई गलत कदम उठा लिया तो ...।
       कितनी मुश्किल से सम्भला था निमिष और वह
अपनी जिम्मेदारी भी समझ गया  था । बी. कॉम. के बाद आगे पढ़ने को वह तैयार नहीं था लेकिन मैंने
उसे प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी के लिये मना लिया
और एक अच्छे कोचिंग सेंटर में उसका दाखिला भी करा दिया । अपने दोनों बच्चों के साथ मुझे उसकी
भी फिक्र लगी रहती । जब भी उसकी पसंद का नाश्ता
छोले - भटूरे या कटोरी चाट बनाती , उसे फोन कर देती,
साथ ही उसकी तैयारी के बारे में भी पूछ लेती । एक - दो , क्या कई परीक्षाओं में उसे सफलता नहीं मिली । यश के साथ - साथ दीदी - जीजाजी को भी मेरा प्रयास
निरर्थक लगता
" तू भी कहाँ उसके पीछे पड़ी है... पढ़ाई - लिखाई उसके बस की बात नहीं....उसे किसी बिजनेस में..."।
         " दीदी ,अभी उसकी उम्र ही क्या हुई है, उसे प्रयास करने तो दीजिये।" मैने दीदी को वाक्य भी पूरा
करने नहीं दिया था ।
      आज निमिष मेरी उम्मीदों पर खरा उतरा था । जब
आप बच्चों पर विश्वास रखते हैं तब उनकी भी इच्छा
होती है कि वे उसे बनाये रखें । हमारा अविश्वास उनके
मनोबल को तोड़ देता है और वे आत्मविश्वास खो देते
हैं । प्रोत्साहन और धैर्य बनाये रखना माता - पिता के
लिये सबसे ज्यादा जरूरी है, मैंने भी यह सबक सीखा
था जिंदगी से । मुझे  विश्वास है निमिष कल अपनी
सारी जिम्मेदारियों में खरा उतरेगा और एक न एक दिन
दीदी - जीजाजी भी इस खोटे सिक्के का असली मूल्य
अवश्य जान जाएंगे ।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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