Tuesday, 9 May 2017

* सफलता की कुंजी सृजनशीलता *

     रुचि की अभिव्यक्ति या सृजनशीलता मानव - मन
को न सिर्फ पोषित करती है वरन उसे पीड़ा , तनाव से
दूर एक स्वच्छ , सुन्दर दुनिया में ले जाती है जहाँ सुर-
ताल हैं , अनोखे रंग हैं , कल्पनाओं के सजीव चित्र हैं ,
अद्भुत भाव - विचार हैं । यदि  सृजनशीलता बनी रहेगी
तो जीवन के प्रति सकारात्मकता बनी रहेगी ।
             रुचि के लिए सीखा  हुआ कार्य कई बार हमें
हताशा के अंधेरे से बाहर निकलने के लिए उजाले का
भी कार्य करता है । शादी के पन्द्रह वर्षों बाद दीपा के
पति की नौकरी छूट गई , क्योंकि उसके पति जिस कागज के कारखाने में काम करते थे , वह बन्द हो गया । उनके सामने एक बहुत बड़ी समस्या आ खड़ी हुई थी। दीपा को शादी से पहले सीखा हुआ ब्यूटीशियन का
पाठ्यक्रम याद आया । घर के एक कमरे से ही ब्यूटी
पार्लर की शुरुआत की । धीरे - धीरे स्थिति सुधरी । आज उसने पार्लर में सभी सुविधाएं जुटा ली हैं । दीपा की मदद से उसके पति ने भी घर पर बेकरी की दुकान
खोल ली है । अब प्रत्येक माह उनकी अच्छी आय होती
है ।
       अनिल और  निशा ने प्रेम विवाह किया था । उनका संयुक्त परिवार था । वर्षों बाद बंटवारा  हुआ
तो जिस दुकान के पीछे अनिल ने जीवन भर मेहनत
की , वह चाचा के हिस्से में चली गई । वे बहुत ही कठिन
दिन थे । आधे रास्ते पर आपको  मालूम न हो कि जाना
कहाँ है , व्यक्ति अकिंचन हो जाता है । ऐसे वक्त में निशा ने उसे सम्भाला । घर पर बुटीक का काम शुरू किया । धीरे - धीरे उसी बुटीक ने एक बड़े दुकान का
रूप ले लिया । अब पति - पत्नी , दोनों बेटे भी मिलकर
दुकान को संभाल नहीं पाते । उन्हें कई नौकर रखने पड़े। अब भी उस समय को याद कर कांप जाते हैं वे
दोनों , परन्तु वही बुरा वक्त उन्हें वह आत्मविश्वास ,
सम्बल दे गया जिसके सहारे वे पूरी ज़िंदगी बिता सकते
हैं । बुरे वक्त में कोई काम आए न आए अपना हुनर , अपनी मेहनत ही काम आती है ।
               सीखा  हुआ हूनर कभी बेकार नहीं जाता ।
शौक के लिए सीखी गई कला ने दीपा व निशा को जीने
की एक नई राह दिखाई । आज भी कई महिलाएं घर पर ट्यूशन पढ़ा कर घर की आर्थिक स्थिति  को सुदृढ़ता
प्रदान कर रही हैं । हमें अपने आस - पास इस तरह के
हजारों उदाहरण मिलेंगे जब एक बिखरते घर को अपनी
हिम्मत , कला , शिक्षा से एक स्त्री ने  संभाला । कला बुरे वक्त में काम आने वाले आभूषणों की तरह है  , प्रत्येक स्त्री के पास यह धन होना ही चाहिए । प्रत्येक
माता - पिता को अपनी बेटी को  शिक्षा के साथ सृजन-
शीलता की ओर अवश्य प्रेरित करना चाहिये । उनकी
रचनात्मकता व प्रतिभा को फलने - फूलने का अवसर
प्रदान करना चाहिये ।
            संगीत व कला मन को एक नई ऊर्जा से लबरेज कर देते हैं। जीवन को तनाव व निराशा के अंधेरे
से बाहर खींच लेते हैं और जीने की नई उमंग पैदा करते है । मेरी एक चाची के दोनों बेटे अमेरिका में बस गये हैं
सेवानिवृत्त चाचा जी की अपनी व्यस्त दिनचर्या है - दोस्तों की महफ़िल , पढ़ने का शौक । परन्तु चाची
रसोई का काम खत्म करके  बोर होती । वह अकेलेपन के अवसाद से कुंठित सी हो गई थी । एक दिन बगीचे की बुरी हालत देखकर उसकी सफाई में जुटी तो बागवानी का पुराना शौक बाहर आ गया । दूसरे दिन बाजार जाकर ढेर सारे बीज व फूलों के सुंदर पौधे ले आई । अपने बगीचे की साज - सँवार में वे इतनी व्यस्त हो गई कि अन्य कार्यों के लिए उन्हें समय निकालना पड़ता है । अकेलेपन की पीड़ा , तनाव कब उड़न - छू हो गया , उन्हें पता भी नहीं चला ।
           इसी प्रकार कई लोगों को मैंने जीवन की सारी
जिम्मेदारियां पूरी कर लेने के बाद संगीत सीखने , लेखन कार्य , चित्रकला इत्यादि  शौक पूरा करते देखा
है । हम अपने दिल में  अनेक ख्वाहिशें  संजोकर रखते
हैं । जीवन की व्यस्तता हमें उन्हें पूरा करने का अवसर
नहीं देती और जब वक्त होता है तो हमारा संकोच ,
आलस्य या लगन  की कमी हमें आगे बढ़ने से रोक देते
हैं । जब भी अवसर मिले हमें अपनी सृजनशीलता या
शौक को अवश्य पूरा करना चाहिए । इससे हमारे मन
को सन्तोष , सम्पूर्णता व सच्ची खुशी मिलती है ।

       स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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