माता - पिता हमें जन्म देते हैं
हमें पालते हैं , शिक्षा देते हैं ।
अपना सुख - दुख भूल जाते हैं,
हमारी हर ख्वाहिश पूरी करते हैं।
अपनी खुशियों को होम कर देते हैं
ताकि हम खुश रहें , आगे बढ़ें ।
वो कर्ज लेते हैं हमारी पढ़ाई के लिए ,
फिर जिंदगी भर उसे चुकाते रहते हैं ,
अपनी इच्छाओं को मार के ।
उनके दिल को कितनी भी चोट लगे,
पर वो हमें नही रोकते दूर जाने से ।
उनकी दुनिया में कितने भी अंधेरे हों,
वो हमें उजाले देना चाहते हैं ।
बच्चों का भविष्य ,
जिसके लिए वो इतना त्याग करते हैं ,
बनने के बाद , हम क्या करते है ,
अपनी एक अलग दुनिया बसा लेते हैं।
उन्हें छोड़ देते हैं जिन्होंने ,
हमारी परवरिश को अपने
जीने का उद्देश्य बनाया ।
हम इतने स्वार्थी क्यों हो जाते हैं ?
क्यों नहीं अब हम ,
अपनी जिम्मेदारी निभाते ।
अब बारी हमारी है ,
उनका हाथ थामने की ।
उनकी देखभाल करने की ,
उनके लिए समय निकालने की ।
उनका सहारा बनने की ,
उनके लिए थोड़ा सा त्याग करने की ।
उनको समझने की ,
उन्हें खुशियाँ प्रदान करने की ,
जिसके वे हकदार हैं ।।
स्वरचित - डॉ . दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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