शबनम अस्पताल में थी ....प्रसव - पीड़ा की हर लहर उसे अतीत के समंदर में खींच ले जाती थी ।
नवमी कक्षा में पढ़ाई छुड़ा दी गई ...पढाई में अच्छी होने
के बावजूद ....अपने से दस वर्ष बड़े वसीम से निकाह ...
दो वर्ष बाद बच्चा न होने पर उलाहना , मारपीट ....पीड़ा
गहराती जा रही थी । पति का दूसरा निकाह , सौतन के आने के बाद कूड़ेदान की तरह उपेक्षित ....। कुछ समय
पश्चात उसकी भी गोद भर गई थी । अपने - आपको
सम्पूर्ण साबित करके भी वसीम से शिकायत नहीं कर
पाई थी । यह उसका तीसरा प्रसव था लड़के के लिए ।
पीड़ा की एक और लहर ....अपनी मासूम
बेटियों के चेहरों पर उसे अपनी ही झलक नजर आ रही
थी । आज तक कभी किसी बात का विरोध नहीं किया
लेकिन.....इस बार पीड़ा के इस समंदर से उबर कर आ
गई तो वह बोलेगी अपनी बेटियों के हित के लिए । परिस्थितयों से लड़ेगी ,उन्हें वो शिक्षा दिलाएगी जो उसे
न मिली ।उसमें एक अजीब शक्ति और उत्साह का संचार
हो रहा था .....मर्मान्तक पीड़ायुक्त आखिरी लहर । आत्मविश्वास भरी विजयी मुस्कान । पता नहीं इस बार
उसको बेटा हुआ या बेटी ....लेकिन उसने अपने अस्तित्व
के एहसास को जन्म दे दिया था ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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