Friday, 5 May 2017

सामाजिक समरसता में हमारा योगदान

               मेरे हाथों में गुब्बारे देखकर मेरी पड़ोसन
चौक कर बोली - " अरे ! अभी तो आपके बच्चे अपने
मामा के घर गए हुए हैं , ये गुब्बारे किसके लिए ? "  ' उस बच्ची के लिए '-  गुब्बारे बेचने वाली लड़की की
तरफ मैंने इशारा किया तो उन्हें मेरी बात समझ में नहीं
आई ।
         मेरे  पिताजी जब भी सफर से लौटते , उनके बैग
में चॉकलेट , मूँगफली , चना , मटर की पुड़ियाएँ भरी
रहतीं , जबकि वे रास्ते में कुछ भी नहीं खाते थे । पूछने
पर कहते - ' उनकी आजीविका मुसाफिरों पर निर्भर है ,
थोड़ा  सा खरीदकर मै भी अपने हिस्से की जिम्मेदारी
निभा लेता हूँ ।'
                 शोभा पिछले पंद्रह मिनट से रिक्शेवाले से
मोल - भाव कर रही थी । आखिर पाँच रुपये कम करा
कर ही वह रिक्शे पर चढ़ी , उसके चेहरे पर अब संतोष
झलक रहा था । यह वही शोभा है , जो  साड़ियों और
सौंदर्य प्रसाधनों पर प्रत्येक माह हजारों रुपये आसानी
से खर्च कर देती है ।
                    प्रत्येक नवरात्रि पर 1001 रु. की घृत -
ज्योति मन्दिर में जलवाने वाले श्रीवास्तव जी की जेब
से किसी भी  लाचार के लिए एक रुपया तक नहीं
निकलता है । हमारी कॉलोनी में रहने वाले कई लोग बाई ,चौकीदार , रिक्शावाला , दूधवाले  को समय पर कभी पारिश्रमिक नहीं देते हैं । चार बार चक्कर लगाने के बाद ही उन्हें पैसा मिलता है । किराना स्टोर वाले गुप्ता जी  कभी भी अपने नौकरों को समय पर उनका वेतन नहीं देते , जबकि एक और व्यवसायी राजेश आहूजा उनके ठीक विपरीत हैं । वे न सिर्फ उन्हें समय पर वेतन देते हैं, बल्कि जरूरत पड़ने पर अपने कामगारों की भरपूर  मदद भी करते हैं ।
              आपने भी अपने आस - पास ऐसे कई उदाहरण देखे होंगे और महसूस भी किया होगा कि
अपनी शानो - शौकत और वैभव का प्रदर्शन करते
लोग   हजारों रुपये निःसंकोच फूँक देते हैं , लेकिन
छोटे - मोटे खर्चों को कम कराने में कोई झिझक
महसूस नहीं करते । ये छोटे कामगारों , कारीगरों ,
मजदूर ,  रिक्शावाले , गुब्बारे , फूल , ठेले खोमचेवाले
सब्जीवाले , दर्जी , मोची इत्यादि जो बड़ी मेहनत
कर अपनी रोजी - रोटी कमाते हैं , इन्हें उनका हक
देने में इन लोगों को अफसोस होता है जबकि शॉपिंग
मॉल में , कपड़ों की बड़ी दुकानों में , सौंदर्य - प्रसाधनों
में , ब्यूटी - पार्लरों में खर्च करने में थोड़ा भी अफसोस
नहीं होता , यहाँ एक रुपया कम कराना इनकी शान
के खिलाफ हो जाता है ।
              समाज विभिन्न वर्गों और स्तरों में बंटा हुआ
है । राष्ट्र के निर्माण में सबकी भूमिका समान होती है।
यहाँ कोई अपने कुत्ते पर इतना खर्च कर देता है , जितने
में एक गरीब परिवार को दाल - रोटी मिल जाए  तो किसी को दो वक्त का खाना जुटाना भी मुश्किल हो जाता है । हम इसी समाज के अंग हैं और एक - दूसरे
से सम्बद्ध हैं , आर्थिक वैषम्य की खाई को पाटने का
दायित्व हम सबका है ।
                मूँगफली या चने खरीदने के लिए पाँच रुपये
खर्च कर देना एक व्यक्ति के लिए बड़ी बात नहीं होती ,
लेकिन यही रुपये जमा होकर एक कुटुम्ब का पेट भरते
हैं । अपनी आवश्यकता के साथ ही इनके प्रति सहयोग
की भावना होना समाज की उन्नति के लिए लाभप्रद होगा । अपाहिज , लाचार लोगों से यदि हम ही मुँह फेर
लेंगे तो  कौन उनकी  मदद करेगा , जहाँ तक  सम्भव हो, लोगों की मदद का जज़्बा मन में बनाये रखें । ऐसे
ही प्रयासों से दुनिया चल रही है और चलती रहेगी ।
                   यदि अपने वैभव - प्रदर्शन पर होने वाले
खर्च का एक प्रतिशत भी हम इन जरूरतमंदों के लिये
रखते हैं तो वह एक बहुत बड़ा अंशदान होगा । सामाजिक समरसता बनाये रखने में हर व्यक्ति को अपना योगदान अवश्य देना चाहिये । यदि  ऐसा हुआ
तो 'वसुधैव कुटुम्बकम ' का सपना साकार हो जाएगा
और आर्थिक विषमता दूर होगी । अपने  मन की
संकीर्णताओं की बेड़ियाँ तोड़ेंगे तो हर व्यक्ति के लिए
इसमें बहुत जगह है । हम भी अपना जीवन स्तर सुधारें
और अपने साथ - साथ दूसरों के बारे में भी सोंचें । सभी
को साथ लेकर आगे बढ़ें तभी देश और  विश्व सही
मायने में विकसित होगा । खुशहाल जनता ही एक
विकसित राष्ट्र की पहचान होती है । तो समाज की
उन्नति के लिए अपना योगदान दें और सच्ची खुशी का
आनंद लें । अपने सहयोग की चमक से किसी का जीवन रोशन करें । आपको इसी जन्म में जन्नत पा लेने का अहसास होगा ।
                        स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे ,दुर्ग ,छ. ग.
           
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