Wednesday, 24 May 2017

पिंजरा ( लघुकथा )

     पिकनिक जाने की खबर सुनकर सारा स्टॉफ चहक
उठा था । रागिनी को छोड़कर  , वह  अक्सर ऐसे आयोजनों में शामिल नहीं होती थी ,क्योकि उसके पति
को यह सब पसन्द नहीं था । उनसे पूछे बिना वह कोई
निर्णय नहीं ले सकती थी । छोटी से छोटी चीज भी
उसके पति ही लाकर देते थे ; न वह अपनी इच्छा से
कुछ पहन सकती और न खा सकती थी । उसका
वेतन भी उसके पति ही निकालते थे ।
     कहने को तो रागिनी है पढ़ी - लिखी , आत्मनिर्भर
पर उस परकटे तोते की तरह ....जिसे पिंजरे से निकलकर कुछ देर कमरे में खुला छोड़ दिया जाता है ।
     घण्टी बजी ....छुट्टी हो गई है या शायद रागिनी के
पिंजरे में जाने का वक्त .....।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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