जब - जब शाखों के पत्ते हिलते हैं ,
दिल हवाओं के मचलते हैं ।
सहला जाते हैं वो चुपके से गाल ,
गुलाबी फूलों के रंग निखरते हैं ।
फूल मुस्कुरा उठते हैं जब,
भौरों की गुंजार सुनते हैं ।
मादक मकरन्द महक उठते,
मदहोशी में मधुप झूमते हैं ।
मृदुल मृणाल लचक उठती ,
रवि गुलाबी अधर को चूमते हैं ।
खिल उठा सारा समां ,
मदना ( मैना )की तरह सभी कूकते हैं ।
कोकिल भी क्यों चुप बैठे ,
वो मीठे सुर में कूजते हैं ।
हरी घासों ने बिछा दी है चादर ,
पंछी आकर यहाँ चहकते हैं ।
खुशियाँ मना रहे हैं सभी ,
फिजाओं में बहार महकते हैं ।
मेघों की सरगोशियों में ,
मनचले मोरों के कदम बहकते हैं ।
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Saturday, 26 October 2019
शरारत
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment