उमा के पति का पिछले कई महीनों से इलाज चल रहा था । इसमें उनकी सारी जमापूंजी खर्च हो गई थी । मजबूरी में अपने जेठ , ननद , भाई सबके पास मदद के लिए गई...सबने अपनी असमर्थता जाहिर की । उसकी विपरीत परिस्थितियों के बारे में जानकारी होने पर उसके दोस्तों ने बिना कहे मिलकर पूरी राशि जुटा दी ..उमा के लिए यह अप्रत्याशित था...जिंदगी भर जिन्हें आदर दिया , जब जो भी आवश्यकता पड़ी , उनका साथ दिया वो रिश्तेदार वक्त पर काम नहीं आये जबकि दोस्तों के लिए कभी कुछ विशेष नहीं किया ..उनसे कभी कोई अपेक्षा नहीं रखी.. उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभाई थी ।बदलते रिश्तों ने उसे बहुत दुःखी किया था पर देर से ही सही वक्त ने उसे सच्चे रिश्तों का मोल समझा दिया था ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
साहित्य सागर
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