Tuesday, 8 October 2019

विदाई (लघुकथा )

विदाई की बेला...अत्यंत भावुक कर देने वाला पल..अपने प्रिय को यूँ अपने सामने से जाता देख अपने - आप पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो जाता है । आँखों से आँसू बह निकलते हैं , वेदना का प्रवाह अंतर्मन का बाँध तोड़ कर  फूट पड़ता  है । युवा बेटे की अंतिम विदाई का पल सबको रुला गया था ...उसके माता - पिता की हालत तो और भी खराब थी । उनका रुदन अम्बर- धरा को कम्पित कर देने वाला था । पूरा समुदाय  उन्हें ढाढ़स बंधाने का असफल प्रयास कर रहा था । दुर्घटना में पुत्र की असामयिक मौत ने न जाने कितने सपने एक झटके में तोड़ डाले थे और उनका जीवन अधूरा कर गया था । यह उनकी नियति थी या किसी की लापरवाही ...बस एक ही सवाल सबके मन को उद्वेलित कर रहा था ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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