Tuesday, 15 October 2019

ग़ज़ल


ख्वाब जो देखे मुकम्मल हो जाए ,
पहले नींद तो मुसलसल हो जाए ।

दुआ माँगी  है तेरी खुशी के लिए ,
जुबां की हर बात पे अमल हो जाए ।

मिलोगे मुझे जो नसीब में होगे तो ,
दुश्वारियाँ राहों की बग़ल हो जाए ।

मिल जाये हमारे दिलों का काफ़िया ,
जिंदगी एक खूबसूरत ग़ज़ल हो जाए ।

उम्मीद का दामन थामे रहना ' दीक्षा ',
न जाने कब कीचड़ से कमल हो जाए ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़1

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