झूठ का बोलबाला यहाँ , सच हुआ जाता शर्मिंदा है ।
प्रतिवर्ष राम तीर चलाते ,पर रावण आज भी जिंदा है ।
छुपकर बैठा रहता है स्वार्थी , अहंकारी के मन में ।
सौहाद्रता की पहुँच से ऊपर उड़ता हुआ परिंदा है।
बहन , बेटी नहीं सुरक्षित अपने ही घर - आँगन में ।
रावण की अशोक वाटिका में सीता रही पाकीज़ा है ।
भ्र्ष्टाचारी , आततायी असहायों का करते कत्ल यहाँ ।
अत्याचारों से निजात दिलाने आते नहीं गोविंदा है ।
"दीक्षा " की प्रार्थना सुनो , हे कृपानिधान हे रामजी ।
इस बार रावण के साथ करना बुराइयों को विदा है ।
स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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