Saturday, 26 October 2019

बच्चे तो बच्चे... बाप रे बाप?

आजकल के बच्चे... बच्चे नहीं बड़ों के भी बाप होते हैं । इतने बातूनी और उनके तर्कों का तो जवाब ही नहीं । कई बार ऐसी बात बोल देते हैं कि बड़े हतप्रभ होकर उनका चेहरा ही देखते रह जाते हैं । एक बार हम सपरिवार अपने गाँव गये हुए थे । वहाँ  पापाजी की काकी के घर गये उन्होंने सबको रुपये पकड़ाये । मेरा भांजा अनीश उस समय दो वर्ष का रहा होगा उसे बच्चा समझ कर काकी ने कुछ चिल्हर पैसे सिक्के के रूप में पकड़ा दिया ।उसकी आदत थी वह सबको बहुत ध्यान से देखता रहता था । सिक्के हाथ में पकड़ाते ही उसने उन्हें जमीन पर फेंक दिया और अपनी तुतलाती जबान में कहने लगा--" भिखमैया समझा है क्या ? "  हम लोगों की हँसी छूट गई पर सब मुँह दबाकर ही हँसते रहे । काकी को उसकी भाषा समझ नहीं आ रही थी वह पूछने लगी " क्या बोल रहा है ये ? " जब उन्हें उसकी बात समझाई गई कि वह भिखारी को भिखमैया बोल रहा है तो वह भी हँसे बिना नहीं रह पाई । उन्होंने उसे दस रुपये का नोट दिया तभी वह खुश हुआ । ऐसे ही एक बार किसी ने उसे  उसके जन्मदिन पर टी शर्ट दिया तो वह कहने लगा - " ये क्या है ? शर्ट बस दिये हो नीचे नँगु रहूँगा क्या? "  उसी प्रकार बचपन में बिना पैकिंग के गिफ्ट देने पर वह नाराज हो जाता - " ऐसे भी कोई गिफ्ट देता है क्या ? "  बाप रे ! उसकी तर्कशक्ति देखकर   अब कोई उससे पंगा नहीं लेता  ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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