मूर्तिकार गढ़ रहा विघ्नहर्ता को ,
जिसने जग को रचा उस सृष्टिकर्ता को ।
माया उसकी कैसी निराली ,
कितनी बारीकी से मूरत बनाई ।
हर इंसान है एक - दूजे से जुदा ,
खासियत सबमें कुछ न कुछ समाई ।
नमन है उस सृष्टि रचयिता को ।
जिसने जग को रचा उस सृष्टिकर्ता को ।
बाजार में बिकने सज गये हैं आज ,
बिककर भक्तों का करते उद्धार ।
बच्चे की आँख में आस - विश्वास ,
दिखा दे ईश्वर कोई चमत्कार ।
अनुग्रहित करें इनकी कर्मशीलता को ।
जिसने जग को रचा उस सृष्टिकर्ता को ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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