आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Thursday, 28 November 2019
बेजुबान ( लघुकथा)
Wednesday, 27 November 2019
दिन है तू रात मैं
अनपढ़ ( लघुकथा )
किस्मत ( लघुकथा )
Monday, 25 November 2019
कुछ खट्टी कुछ मीठी
Sunday, 24 November 2019
बोलती तस्वीर
Friday, 22 November 2019
किसके लिए ( लघुकथा )
Thursday, 21 November 2019
माँ
Monday, 18 November 2019
मधुर मिलन
Friday, 15 November 2019
ग़ज़ल
Wednesday, 13 November 2019
करुण रस
Monday, 11 November 2019
सजल - 3
Friday, 8 November 2019
मुक्तक
मजहब के नाम पर लड़ना नहीं ,
धार्मिक उन्माद में भिड़ना नहीं ।
मानव धर्म हो सबसे ऊपर _
व्यर्थ के विवाद में पड़ना नहीं ।।
डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
शब्द सीढ़ी
Wednesday, 6 November 2019
इच्छाशक्ति
Tuesday, 5 November 2019
सूफियाना इश्क
Monday, 4 November 2019
संस्मरण
Sunday, 3 November 2019
छठ पर्व
कैक्टस के फूल ( कहानी )
राजीव जब भी बालकनी में आते एक बार जरूर मुझे टोकते - " ये क्या कैक्टस लगा रखे हैं तुमने...सिर्फ काँटे ही काँटे... इन्हें फेंकती क्यों नहीं हो । घर शिफ्ट करते वक्त ही कहा था मैंने , इन्हें वहीं छोड़ दो पर नहीं तुम तो किसी की बात मानती नहीं ..ले ही आई ।ऐसे भी इस घर में कितनी कम जगह है , उस पर तुम्हारे ये कैक्टस " । अरे ! कितने अच्छे तो लगते हैं ये , फिर इन्हें विशेष देखभाल की आवश्यकता नहीं होती । मेरे जैसे लापरवाह मालियों के लिए यही ठीक हैं । जैसे जीवन में सुख तभी महत्वपूर्ण होते हैं जब दुःख का एहसास कर लिया जाये वैसे ही फूलों के साथ काँटों को भी रखना चाहिए ।" सब दिन होत न एक समान " हमें जीवन के हर पहलू के लिए तैयार रहना चाहिए । जीवन की विषमताओं को सहन करने की प्रेरणा देते हैं ये कैक्टस और जनाब ! जब इन कंटीले कैक्टस के फूल देखोगे न तुम तो दाँतों तले उंगलियाँ दबा लोगे तुम । इतने खूबसूरत होते हैं ये --अपनी हथेलियों को अपने सिर के ऊपर तक फैलाते हुए रश्मि ने कहा तो राजीव हँस पड़ा । " तुम और तुम्हारी ग्रेट फिलॉसफी "..मैंने तो देखे नहीं कभी तुम्हारे इन कैक्टस को खिलते हुए । मुझसे तो दूर ही रखो इन्हें , डर लगता है मुझे इनके काँटों से -- राजीव ने मुँह बनाते हुए कहा तो उसकी अदा पर रश्मि भी हँस पड़ी । राजीव और रश्मि की शादी को लगभग आठ वर्ष होने को आये हैं । रश्मि को राजीव ने पहली बार अपने भैया की शादी में देखा था । दिखने में आकर्षक तो वह थी ही , बातचीत में भी कुशल थी । भाभी की चचेरी बहन होने के कारण और भी कई कार्यक्रमों में उससे मुलाकात हुई । परिवार भी ठीक था इसलिए राजीव की चाहत जाहिर करते ही दोनों परिवार के बड़ों को रिश्ता मंजूर हो गया ।
दोनों के बीच बहुत अच्छा सामंजस्य है । बहुत ही सुघड़ता से रश्मि ने अपनी गृहस्थी को सजा रखा है । पर कहते हैं न कि हर किसी के जीवन में कोई न कोई कमी जरूर होती है । उनके आँगन में किसी फूल का न खिलना उन्हें कभी - कभी बहुत दुखी कर देता है । पर वे दोनों इस कारण को अपने बीच दीवार नहीं बनाते बल्कि यह उन्हें एक - दूसरे के अधिक करीब लाता है । वे दोनों अन्य बातों में खुशी ढूँढने का प्रयास करते हैं और खुश व व्यस्त रहते हैं । तीन - चार वर्ष घर पर रहने के बाद इसी वजह से राजीव ने जिद करके उसे पास के एक स्कूल में एक शिक्षिका के रूप में ज्वाइन करवा दिया ताकि वह हमेशा व्यस्त रहे और अपनी उच्च शिक्षा का सदुपयोग भी कर सके ।
सास - ससुर व अन्य रिश्तेदारों के साथ भी उसके मधुर सम्बन्ध हैं । हर त्यौहार वे परिवार के साथ ही मनाते हैं और फिर अपनी नौकरी में वापस आ जाते हैं । यहाँ वह कोई न कोई सृजनात्मक कार्य करती रहती है तो बोर नहीं होती पर कुछ दिन वहाँ रहकर आने के बाद उसे बहुत सूनापन महसूस होता है क्योंकि वहाँ शायद सबके पूछने पर कि कुछ है तो नहीं , कुछ इलाज क्यों नहीं कराते तुम लोग , ध्यान दो अब समय निकलने लगा है... जैसे सवाल उसके मन को छलनी कर देते । जीवन की जिस कमी के बारे में वे सोचते भी नहीं घर जाने पर नाते - रिश्तेदार सभी उसके बारे में ही बात करते हैं । इस मामले में उसके शहर के लोग अच्छे हैं जिन्हें किसी के बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं है । भले ही यह आदत उन्हें असामाजिक बना देती है , लोग अपने पड़ोसी को भी नहीं पहचानते । जितना बड़ा शहर उनके दायरे भी उतने ही सीमित , गाँवों में तो लोगों को हर घर के एक - एक सदस्य की जानकारी रहती है इसलिए हर छोटी बात पर फुसफुसाहट शुरू हो जाती है ।
रश्मि शाम को स्कूल से आकर थोड़ा आराम कर बालकनी में आ जाती है । उसने जो छोटी सी बगिया लगाई है , उसकी साज - संवार करती है । उसके घर के पास ही एक बड़ा सा मैदान है जिसमें बच्चे खेलते रहते हैं , वह अपना काम करके उन्हें देखती रहती है । उत्साह से भरे मासूम चेहरे ...कभी लड़ते झगड़ते कभी हँसते - मुस्कुराते । क्रिकेट खेलते हुए कई बार उनकी गेंद उसकी बालकनी में आ जाती है तो उनकी प्यार भरी मनुहार रश्मि को स्नेहसिक्त कर देती है । "आंटी बॉल दीजिये न " जब तक दो - चार मनुहारें नहीं आ जाती वह चुपचाप अपने काम में लगी रहती है फिर मुस्कुरा कर धीरे से बॉल फेंक देती है । जब वे खुश होकर " थैंक्यू आंटी " कहते हैं , वह पुलकित हो उठती है किसी बच्चे की तरह मानो वह भी उनके खेल का हिस्सा हो ।
वह पल उसे बचपन की स्मृतियों में ले जाता है और याद आता है पीहर का आँगन । कितनी खिलंदड़ी थी वह भी । शाम को स्कूल से आने के बाद खेलने के लिए बाहर निकलती थी तो वापस जाने का नाम ही नहीं लेती । मम्मी की डांट पड़ने पर ही घर जाती । दीदी उससे बिल्कुल अलग थी , वह तो घर से बाहर निकलना ही पसन्द न करती । माँ बड़बड़ाते रहती - दो बच्चे दोनों दो विपरीत दिशा में भागती हैं , मैं किसके पीछे भागूँ ।
वक्त कैसा भी हो रुकता नहीं है । साल दर साल बीतते गये । अब तो सभी सलाह देने लगे थे कि एक बच्चा गोद ले लो । कितने ही बच्चे अनाथालय में पलते एक घर की आस पाले रहते हैं , उन्हें एक घर , परिवार मिल जायेगा । उसने राजीव से भी यह बात कही पर वे कोई निर्णय नहीं ले पा रहे थे । बच्चा गोद लेकर उसका पालन - पोषण कर वे अपनी जिंदगी सार्थक बना सकते हैं पर क्या जीने की सिर्फ यही राह है ?
राजीव संजीवनी फाउंडेशन से जुड़ा हुआ था । एक बार उनके इवेंट में रश्मि भी गई थी वृद्धाश्रम । वहाँ वे लगभग तीन घण्टे रहे , बुजुर्गों के साथ बातें की , उनके साथ कुछ वक्त बिताकर उन्हें अकेलेपन के अंधेरों से बाहर निकालने की कोशिश की । वहाँ से लौटते वक्त उन बुजुर्गों के मुस्कुराते चेहरों के साथ ढेर सारा स्नेह व आशीर्वाद भी वे अपने दामन में समेट कर ले आये थे ।
उस दिन की घटना ने विचलित कर दिया था रश्मि को । उसके स्टॉफ के किसी रिश्तेदार की मृत्यु हो गई थी । उनके बेटे अमेरिका में रहते थे , मुखाग्नि देने भी नहीं पहुँच पाये । अड़ोस - पड़ोस के लोगों और दूर के रिश्तेदारों ने अंतिम संस्कार किया । जीवन का अंतिम सत्य यही है तो बच्चे के होने या न होने से क्या फर्क पड़ता है । बच्चे को जन्म देने और उसका पालन - पोषण करने तक ही क्या जीवन की सार्थकता है ? जिंदगी को इतनी छोटी परिधि में सीमित क्यों रखना ? अपनी ममता को एक बच्चे के पालन - पोषण तक ही सीमित न रखकर उसे वृहद आकाश भी तो दे सकते हैं । बहुत दिनों से दुविधा में फंसा मन आज निर्णय ले सका था । अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए अपनी सेवा वह अनाथालय और वृद्धाश्रम को भी दे सकती है , अपनी सुविधानुसार । बिना किसी बन्धन , निःशर्त जीवन जीना चाहिए न कि किसी रिश्ते में बंधकर इसे मजबूरी में निभाना । उसने अपना विचार राजीव को बताया तो वह भी बहुत खुश हुआ । उसने महसूस किया उसके आँगन के कैक्टस में ढेर सारे फूल खिल आये हैं ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
सजल - 2
समांत - आर
पदांत - स्वेच्छिक
मात्रा भार - 18
कुछ ऐसा चमत्कार हो जाये ,
ईश्वर से साक्षात्कार हो जाये ।
मिले न किसी को कोई बुरी खबर ,
सकारात्मक अखबार हो जाये ।
दुआ जो माँगो मिल जायेगा ,
दुनिया न कोई बाजार हो जाये ।
दिल में बहे स्नेह की गंगा ,
जिंदगी प्रेम रस धार हो जाये ।
हो चारों ओर सुकून ,अमन - चैन ,
धर्म व कर्म एकाकार हो जाये ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़