देह के साथ मन भी झुलसा लाई है ।
चन्द सवाल हैं उन भीगती आँखों के ,
जो अश्कों के साथ दर्द से भारी हैं ।
जो सजा थी उसके खूबसूरत होने की ,
जिद अपनी इज्जत , सम्मान न खोने की ।
लड़की होना क्या गुनाह है उसका ,
या उसने ना कहने की सजा पाई है ।
कुसूर क्या था उसका ? किया था इंकार ,
उस पागल प्रेमी का प्रेम नहीं किया स्वीकार ।
एकतरफा प्रेम की भेंट चढ़ गई जिंदगी ,
छीन लिया उसका सब कुछ , उसकी खुशी ।
पीड़ा उसके हिस्से ही क्यों आती ?
वह खौफनाक मंजर अभी तक नहीं भुलाई है ।
उन करुण आँखों के सवालों के जवाब,
परिवार , समाज को ही देना होगा ।
क्यों नहीं देते संस्कार लड़कों को कि ,
लड़की की ना भी सुनना होगा ।
सिखाओ अपने लड़कों को कि लड़की
नहीं कठपुतली , न कोई परछाई है ।
अभी - अभी वह अस्पताल से आई है ,
देह के साथ मन भी झुलसा लाई है ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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