" किस्मत का लिखा कौन टाल सकता है बेटा ! पर तुमको बच्चों के लिए अपने - आपको सम्भालना होगा " - रश्मि को घेर कर बैठी औरतें विलाप कर रही थीं । पैतीस वर्ष की रश्मि के पति का आकस्मिक निधन हो गया था । आठ वर्ष और दस वर्ष की दो बेटियों के साथ अब वह जीवनपथ पर अकेली हो गई थी । सही कहा था बुआ ने - अपनी किस्मत पर रोने की बजाय अब उसे धैर्य व साहस के साथ जीना होगा , परिश्रम से अपने प्रारब्ध को बदलना होगा । दृढ़ निश्चय ने निराशा व दुःख की इस घड़ी में भी उसके चेहरे की आभा बढ़ा दी थी ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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