Wednesday, 27 November 2019

अनपढ़ ( लघुकथा )

 अनपढ़ (लघुकथा )

     अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए राज के आँसू अनवरत बह रहे थे... उच्च अधिकारी होने का दंभ उन आँसुओं में तिरोहित हो गया था । आज रेणु ने अपनी एक किडनी देकर उसकी जान बचा ली थी जिसे अनपढ़ समझकर उसने जिंदगी भर उपेक्षित किया था । माता - पिता के दबाव के कारण उसने रेणु से शादी तो की थी लेकिन कभी दिल से उसे अपनाया नहीं
। रेणु बिना किसी शिकायत के अपने दायित्व निभाती रही , आज उसने साबित कर दिया था निःस्वार्थ प्रेम और त्याग किसी डिग्री का मोहताज नहीं होता , साथ ही अपने पति के हृदय में वो स्थान बना चुकी थी जिसकी वह हकदार थी ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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