दर्द को घटाती हूँ , खुशी को जोड़ लेती हूँ ।
ये मुस्कान जो रहती है सदा मेरे होंठों पर _
दुःखों की झील में खिला कमल तोड़ लेती हूँ ।
कुविचारों के गर्द से मैं अपना मन साफ रखती हूँ ।
मुफलिसी से गुजरकर भी दामन पाक रखती हूँ ।
ये उजाला सा रहता है सदा जो साथ मेरे _
अंधेरों की कलाई को जरा मैं मरोड़ देती हूँ ।
हौसलों की कश्ती से दरिया पार करती हूँ ।
अपने अधिकारों को पाने जमाने से लड़ती हूँ ।
दृढ़ विश्वास है मुझको मिलेगी जरूर मंजिल _
अपने मजबूत इरादों से मैं राहों को मोड़ देती हूँ ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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