पुष्पित सुरभित उपवन लगता है ।
यूँ तो हसीं लगते सारे नजारे ,
सबसे प्यारा साजन लगता है ।
जवां हो रही कली ख्वाहिशों की ,
पुलकित सरसिज सा मन लगता है ।
लट उलझाये , दुपट्टा उड़ाये ,
कुछ मनचला यह पवन लगता है ।
उमंगें हुई समंदर सी गहरी ,
हृदय नीलाभ गगन लगता है ।
उड़ते रहते पंछी के मानिंद ,
सुंदर प्यार का बंधन लगता है ।
नजरें मिला हुई बेसब्र " दीक्षा ",
चुगली न करे धड़कन लगता है ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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