Friday, 15 November 2019

ग़ज़ल

इश्क में सरस जीवन लगता  है ,
पुष्पित सुरभित उपवन लगता है ।

यूँ तो हसीं लगते सारे नजारे ,
सबसे प्यारा साजन लगता है ।

जवां हो रही कली ख्वाहिशों की ,
पुलकित  सरसिज सा मन लगता है ।

लट उलझाये , दुपट्टा उड़ाये ,
कुछ मनचला यह पवन लगता है ।

उमंगें हुई समंदर  सी गहरी ,
हृदय नीलाभ गगन लगता है ।

उड़ते रहते पंछी के मानिंद ,
सुंदर प्यार का बंधन लगता है ।

नजरें मिला हुई बेसब्र " दीक्षा ",
चुगली न करे धड़कन लगता है ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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