व्याकुल चाँद घूमे गगन - गगन ।
चाँदनी में वह मुखड़ा ताक रहे ,
यामिनी कहाँ बैठी बन दुल्हन ।।
नीरवता सखी सदा साथ रहे ,
शीतल , पुलकित मन्द समीरन ।
चूनर में जुगनू को टांक रहे ,
खिले श्वेत पुष्प बने आभूषण ।।
पर खोल रहे गुंचे अपने ,
उड़े रंगोआब महका गुलशन ।
इंतजार में हैं सदियाँ बीती ,
आस लगाये है बैठी विरहन ।।
आ गई है बेला पूनम की ,
होगा अब तो उनका मधुर मिलन ।
निशा की प्रीत में खिला चाँद ,
चन्द्र - स्पर्श से हुई निशा रौशन ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment