Monday, 4 November 2019

संस्मरण

जीवन की कई घटनाएं हमें यह सोचने को मजबूर करती हैं कि सचमुच पुण्य - पाप का हिसाब यहीं इसी दुनिया में हो जाता है। हम लोगों को राजहरा शिफ़्ट हुए कुछ समय ही हुए थे ,वहीं पास में एक परिवार रहता था जो अपनी बहू को बहुत प्रताड़ित करता था । माँ , बेटा और पिता मिलकर सीधी - सादी बहू को परेशान करते थे । शायद दहेज ही कारण रहा होगा । एक दिन उनके घर में आग लग गई और जैसा हमेशा होता है उसमें बहू ही फँस गई । ये तीनों बाहर निकल आये थे और फायर बिग्रेड वाले भी आ गये थे । वे अंदर जाकर मुआयना कर पाइप लगाने के लिए बाहर आये । तभी पता नहीं पिता - पुत्र को क्या सूझा वे उस कमरे में गये जहाँ वह लडक़ी जल रही थी । शायद वे अपनी तसल्ली करने गये थे कि वह जिंदा तो नहीं है।
तभी उसी कमरे में रखा एक्स्ट्रा सिलिंडर फट गया और वे पिता - पुत्र बाहर नहीं निकल पाये  , वहीं जलकर खाक हो गये । बाहर खड़ी माँ इस सदमे से पागल हो गई । अपनी बहू के साथ उन्होंने जो किया उसका न्याय ईश्वर ने तुरंत कर दिया था । उस जले हुए घर के अवशेष बहुत दिनों तक उस हादसे की याद दिलाते रहे साथ ही मन में इस आस्था को भी जागृत करते रहे कि ईश्वर गलती करने पर दण्ड अवश्य देता है 
स्वरचित -  डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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