दीर्घायु सुत पाने को माँ कर रहे तेरी पुकार ।
उदित सूर्य को अर्ध्य देकर व्रतारम्भ उषाकाल ,
विविध फल- फूलों से भर लाई मैं अपनी थाल ।
माथे सिंदूर तिलक भाल पर मेहंदी सजे हाथ ,
मन श्रद्धा से भरा हुआ प्रार्थना को झुके माथ ।
कमर तक तालाब में डूबी हुई तप करती आज ,
तीन दिवस का कठिन व्रत पूरे करता सारे काज ।
भास्कर की सुनहरी किरणें जग में उजाला भर गईं ,
छठ माता का पूजन कर सुतों की माताएँ तर गईं ।
हे मात ! मेरे सुहाग को सदा अमर बनाये रखना ,
मेरे परिवार को खुश रखना सुख - समृद्धि भरना ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment