दिन है तू रात मैं , मिले कहाँ कोई कहे ।
क्या करूँ बात मैं , दूरियाँ दरमियाँ रहे ।
वक्त की धार में ,ख्वाहिशें बनके पात बहे ।
मार मुश्किलों की ,बता कोई कब तक सहे ।
दिन और रात मिल , एक नया क्षितिज गढ़ें ।
प्रेम के उजास में , थामकर हाथ आगे बढ़ें ।
दो विपरीत रंग घुल - मिलकर नया रंग बनें ।
एक पथ के साथी हम एक जिस्म के अंग बनें ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , छत्तीसगढ़
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