सावन कृष्ण पक्ष की अमावस्या को छत्तीसगढ़ में हरेली पर्व मनाया जाता है । कृषक खेती का प्रारंभिक कार्य पूर्ण कर इस दिन अपने हल , कुदाली , फावड़ा व अन्य कारीगर अपने औजारों को साफ कर उनकी पूजा करते हैं तथा गुलगुला , बबरा का प्रसाद चढ़ाते हैं जो गुड़ व आटे से बनता है । कहा जाता है कि इस दिन नकारात्मक शक्तियां प्रभावी होती हैं इसलिए घर के दरवाजे पर नीम की पत्तियां खोंसी जाती हैं और पहले लुहार घर की चौखट पर कील गड़ाते थे । इसके लिए उन्हें चावल या रुपये के रूप में दान दिया जाता है। इस दिन से हिंदुओं के त्यौहार की शुरुआत होती है । घर के बाहरी दीवार पर मानव आकृतियां बनाई जाती हैं । बांस से गेड़ी बनाई जाती है तथा पारम्परिक खेल जैसे फुगड़ी , बिल्लस , कबड्डी , पिट्ठुल खेला जाता है । यह हरियाली का त्यौहार है जो प्रकृति के साथ साथ मनुष्य के जीवन में खुशियों व उमंगों का नव संचार करता है ।
डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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