ओझल हुआ रवि थक कर दिन हुआ तमाम ,
सभी जीव घर लौटने लगे हो गई है शाम ।
भोर से जो शुरू हुई भागमभाग जिंदगी की,
क्षीण हुई ऊर्जा तन की , पूरे हो गये सब काम ।
पीड़ा , थकन , भटकन लगी रहेगी देह की ,
दो घड़ी बैठकर शांत अब कर लो कुछ आराम ।
चिंता , शंका , क्रोध मन में आते ही रहते ,
भूल इन मन के भावों को पी लो खुशी के जाम ।
चंचल मन के घोड़े निरन्तर भागते ही रहते ,
चित्त को स्थिर बना जरा कस दो इसकी लगाम ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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