मेघा मेघा काले मेघा
जल्दी आना तुम ।
सूखे - सूखे खेतों पर ,
जल बरसाना तुम ।
पर्वतों पर चढ़कर ,
ऊँचे - ऊँचे पेड़
अम्बर को ताक रहे हैं ।
पंजों पर खड़े होकर ,
तुम्हें ही झाँक रहे हैं ।
बड़ी देर हुई इस बार ,
दरस दिखाना तुम ।
सूखे - सूखे खेतों पर ,
जल बरसाना तुम ।
नदी , तालाब , कुँए ,
सब सूख गए हैं ।
इंसानों की किस भूल पर ,
आप रूठ गये हैं ।
भूल सुधरेंगे अपनी ,
मत तरसाना तुम ।
सूखे - सूखे खेतों पर
जल बरसाना तुम ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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