गोकुल की गलियों में रचाया है रास ,
उंगलियों में गोवर्धन होठों पे स्मित हास ।
कालिया के फन पर थिरक उठे कृष्ण_
कर्म का संदेश देकर बन गये हो खास ।
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चीरहरण द्रोपदी का देख न पाये तुम ,
उस की लाज बचाने दौड़ के आये तुम ।
अस्मत दांव पे लगती है हर रोज यहाँ _
कृष्ण उन्हें क्यों न न्याय दिलाये तुम ।
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नटखट नन्दलाल तू है बड़ा प्यारा ,
बांसुरी की तान पे नचाये ब्रज सारा ।
कहाँ छुप गये हो मनमोहन मुरारी _
दरस को राह निहारे जग सारा ।
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सज रहा पूनम का चाँद तारों की चूनर ओढ़ के ,
रचा रहे गोपियों संग रास लोक लाज छोड़ के ।
प्रीत की रीत है निराली मुखड़ों पे घूँघट न लाज_
चली आई राधा भी आज बन्धन सारे तोड़ के ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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