Thursday, 22 August 2019

मुक्तक

गोकुल की गलियों में  रचाया है रास ,
उंगलियों में  गोवर्धन होठों पे स्मित हास ।
कालिया के फन पर थिरक उठे कृष्ण_
कर्म का संदेश देकर बन गये हो खास ।

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चीरहरण  द्रोपदी का देख न पाये तुम ,
उस की लाज बचाने दौड़ के आये तुम ।
अस्मत दांव पे लगती है हर रोज यहाँ _
कृष्ण उन्हें क्यों न न्याय दिलाये तुम  ।

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नटखट नन्दलाल  तू है बड़ा प्यारा ,
बांसुरी की तान पे नचाये ब्रज सारा ।
कहाँ छुप गये हो  मनमोहन मुरारी _
दरस को राह निहारे जग सारा ।

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सज  रहा पूनम का चाँद  तारों की चूनर ओढ़ के ,
रचा रहे गोपियों संग रास लोक लाज  छोड़ के ।
प्रीत की रीत है निराली मुखड़ों पे घूँघट न लाज_
चली आई  राधा भी आज बन्धन सारे तोड़ के ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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