सुरमयी शाम लेकर आई है ,
आँचल में सिंदूरी सौगात...
सुरभित हुआ पवन है औ ,
राहत भरी रात ...
नींद का प्याला पिलाती ,
श्रांत क्लांत गात...
थपकियाँ देती , दुलराती ,
विस्मृत कर देती हर बात....
थके हारे जीवों को ,
दे जाती मीठे ख्वाब...
भूलकर पुरातन को ही ,
कर पाते नूतन आगाज़....
रवि की आहट सुन ,
गई उषा जाग...
अंगड़ाई ले प्रस्फुटित हुई कली ,
झूम उठे पात...
खगवृन्द चहक उठे ,
ले अधरों पे मधुर राग...
जाग उठा जन - जीवन ,
लो आया नव - प्रभात..
प्रकृति के अनोखे रंग में,
रंग गया समूचा समाज ।
उमंगित हुआ जन - मन ,
पाकर प्रिय अनुराग ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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