तिमिर न रोक सकेगा सूरज को निकलना है ।
अशिक्षा को मिटाने ज्ञानदीप को जलना है ।
कब तक बाँधे रहेंगी ये दकियानूसी रवायतें ,
तोड़कर सब दीवारें बेटी को आगे बढ़ना है ।
रोक न सकेंगी उन्हें अंधेरों की आजमाइश ,
लालटेन की रोशनी में भी बेटी को पढ़ना है ।
शिक्षा ही मिटा सकती जाति - धर्म की दीवारें ,
संकीर्ण मानसिकता के दायरे से निकलना है ।
राह -ए - रौशन करेगा ज्ञान का उजाला "दीक्षा "
परवरिश बेटियों की इसी सोच से करना है ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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