नजरों में वो भयावह मंजर है ,
मुश्किलों में आज कई घर हैं ।
चारों ओर मचा दी तबाही ,
भीषण ये बाढ़ का कहर है ।
जिंदगी औ मौत के जंग में ,
अपनों को खोने का डर है ।
देखो कैसे बदलती किस्मत ,
महलवासी हो गये बेघर हैं ।
कल तक जो देते थे सहारा ,
आज वो भटकते दर - बदर हैं ।
फले - फूले नदी के किनारे ,
आज विनष्ट हुए वे नगर हैं ।
बनने - बिगड़ने पे न रो "दीक्षा "
यही जिंदगी का सफर है ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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