Sunday, 25 August 2019

माँ की व्यथा

प्रिय बेटे  ,
       उस दिन तुम  कहकर गये थे न कि अभी लौट कर आता हूँ । तुम अब तक नहीं आये , यहाँ सब तुम्हारी प्रतीक्षा  में हैं । रोज नाश्ते , खाने के समय टेबल पर तुम्हारी कमी महसूस होती है.. लगता है कि तुम कहीं से आओगे और पूछोगे माँ आज क्या स्पेशल बनाया है । कई बार ऐसे ही दरवाजे तक आती हूँ.. लगता है कि घण्टी बजी है पर वहाँ कोई होता नहीं है ।  घण्टों तुम्हारे कमरे की सफाई करते रहती हूँ , तुम्हारी किताबों को जमाते रहती हूँ । तुम्हारी आलमारी के आगे खड़े होकर तुम्हारे कपड़े देखती रहती हूँ और उनमें तुम्हारी छवि को याद करती रहती हूँ  ।  यह सब करके चाहती हूँ तुम वैसे ही मुझसे नाराज हो कर कहो - अरे माँ तुम मेरा सामान मत जमाया करो , फिर मुझे कुछ मिलता नहीं है । पहले तुम्हारे ऐसा करने पर मैं नाराज होती थी न , पर अब उन्हीं शब्दों को सुनने को कान तरस गये हैं । वो पेपर वेट जिसे अक्सर अपने हाथों में उठाकर ऊपर फेंकते रहते थे तुम..अब भी तुम्हारी राह तक रहा है । तुम्हारी बाइक मैने  साफ करके चमका दी है जिससे तुम्हें बहुत प्यार है ।
          वो मुहल्ले के गाय , कुत्ते , जिन्हें तुम रोटी और बिस्किट खिलाते रहते थे ...गेट पर खड़े रहकर तुम्हारा इंतज़ार करते हैं... रोटी देने के बाद भी नहीं जाते शायद  उस प्यार भरे स्पर्श के लिए जो तुम उन्हें सहला कर व्यक्त करते थे । घर पर अब न टी. वी. के रिमोट के लिए झगड़ा होता है और न चार्जर के लिए । न कोई किसी को चिढ़ाता है न मजाक करता ...सब चुप से हो गए हैं मानो  आँखें खुली रख कर सो गये हों । तुम क्या गये जीवन से रौनक ही चली गई । बिना नमक की सब्जी , बिना इंसान के घर या बिना प्राण के देह की तरह सब कुछ बेमानी सा लगता है । मालूम है तुम लौट कर नहीं आओगे फिर भी एक उम्मीद सी लगी रहती है,
नजरें दरवाजे से हटती ही नहीं ...कभी  अपनी गोद में खिलखिलाता तुम्हारा बचपन याद आता है ...कभी एक सफेद चादर में लिपटी तुम्हारी पार्थिव देह...काश ! उस दिन वह ट्रक ड्राइवर शराब नहीं पिये होता या तुम अपने दोस्त के जन्मदिन की पार्टी में न जाते । काश ! उन बीते लम्हों  को डिलीट कर सकती अपनी जिंदगी से और वापस ले आती तुम्हें । अपने  युवा बेटे को खोने से  बड़ा
भी कोई  दुःख  हो सकता है । काश ! मैं ईश्वर से अपने बदले तुम्हारी जिंदगी माँग पाती । ये सूनी आँखें आज भी तुम्हारा इंतज़ार कर रही हैं और करती रहेंगी शायद पथरा जाने तक 🙁

✍️✍️ डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

No comments:

Post a Comment