Friday, 10 May 2019

वो शिकारी

धुँए का जहर ढाता जा रहा कहर ,
प्रदूषण बन गया है  आज शिकारी ।
कचरे के ढेर पर बैठे गाँव  शहर ,
अब नचा रहा सबको वह मदारी ।
हवा , पानी में घुल रहा जहर ,
बनकर बैठे आज हम भिखारी ।
रोगग्रस्त हो रहे ,बढ़ रहा मृत्युदर ,
हर शख्स कर रहा मौत की सवारी ।
हरी - भरी धरती  हो गई बंजर ,
गर तुमने अपनी आदत न सुधारी ।
देखना पड़ेगा  वह भयावह मंजर ,
जान देकर चुकानी पड़ेगी उधारी ।
संतुलन न बिगाड़ चेत जा वक्त पर ,
प्रकृति की रक्षा में खुशहाली हमारी ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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