वसुन्धरा यह कहे पुकार ।
बंद करो अब अत्याचार ।
कंक्रीट का नगर बसाने ,
जंगल को दिया उजाड़ ।
सूखे पड़े जलस्त्रोत सारे ,
पड़ गई अनेकों दरार ।
सूना हो गया मेरा आँगन ,
जीव - जंतु कर रहे चीत्कार ।
ताक रहा बेबस अम्बर ,
होकर मेघ रहित लाचार ।
स्वार्थरत होकर मानव ने ,
जल - चक्र को दिया बिगाड़ ।
आपदाओं को दे आमंत्रण ,
मचा दिया है हाहाकार ।
वक्त रहते चेत जा अब तो ,
कर ले गलतियों में सुधार ।
हरे - भरे वृक्षों को उगाकर ,
बंजर धरती का कर शृंगार ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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