Wednesday, 8 May 2019

पुकार

वसुन्धरा यह कहे पुकार ।
बंद करो अब अत्याचार ।

कंक्रीट का नगर बसाने ,
जंगल को दिया उजाड़ ।

सूखे पड़े जलस्त्रोत सारे ,
पड़ गई अनेकों  दरार ।

सूना हो गया मेरा आँगन ,
जीव - जंतु कर रहे चीत्कार ।

ताक रहा बेबस अम्बर ,
होकर मेघ रहित लाचार  ।

स्वार्थरत होकर मानव ने ,
जल - चक्र को दिया बिगाड़ ।

आपदाओं को दे आमंत्रण ,
मचा दिया है हाहाकार ।

वक्त रहते चेत जा  अब  तो  ,
कर ले गलतियों में सुधार ।

हरे - भरे वृक्षों को उगाकर ,
बंजर धरती का कर शृंगार  ।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़


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